________________
सं० तरंगवईकहा |
विव मे डहइ अंगं ॥४९॥ पंचविहइंदियत्था इट्टा विसयसुहनिव्वुइकरा मे । ते पिययमेण रहिया घरिणि! सोयं उईरति ॥५०॥ पियमिलसव्वमणोरहसंपूरयं वा संकप्पियं मए तत्थ । तस्स समागमहेउं विहियं आयंबिलट्ठमयं ॥ ५१ ॥ सबदहविणासणयं पभवं च
Nणत्थं चित्त
पडालेहणं सव्वसोक्खाणं । अणुमण्णइ य गुरुयणो तं मज्झ वयं अणुणयंतो ॥५२॥ आयंबियवयकरणेण दुचलं सयणपरियणो मज्झं । | जाणेइ न हु मं जाणइ वम्महसरसोसियतणुं ॥५३॥ इत्तो दुक्खवेदणासंतावियाए मे हिययाए सोगविस्सामो। आलेक्खकम्मजोग्गो निम्मविओ पाओ परिणि ॥५४(१॥ दढपासियमसिणाओ जुत्ताओ(सीए) हि दिण्णमाणवजाओ। कासिम्हि वहुवग्गासण्हवण्णाओ । ५५|| उभओ तिक्खपग्गाओ अवक्खडा तह पमाणजुत्ताओ। परिसण्हनिद्धलेहा पाणीसु वि उज्जमंतीओ ॥५६।। ताहि य मे तं लिहियं तम्मि पडे चक्कवायजाईयं । जं मे पिएण सहियाए समगुरूवंमि निरवसेसं ।।२७।। जह रमियं जह चरियं विद्धो य मओ य सहयरो जह मे । जह खामिओ य वाहेण अणुमया तं जहा अहयं ।।२८।। तत्थेव मए लिहिया भागीरहिणोवइट्ठगइमग्गा। गंगा उयहितरंगा रहंगनामाओ लि(वि) विहंगा ॥५९|| हत्थी व सो(से)यक्त्थो वाहजुयाणो य गिहियकोयंडो। तत्थ लिहिया मए तो कमेण वट्टीए चित्तमि ॥६०|| पउमसरो य बहुविहा रुक्खकडिल्ला य दारुणा अडवी। कमल-IN | सहस्सा किण्हउउकालसमण्णिया लिहिया ॥ ६१ ॥ अच्छामि य पेच्छंती कुंकुमवण्णं तयं रहंगं च । मह मणरमणं चित्तगयं |
अण्णणचित्ता हं ॥६२(१) तइया वि दिणे गुण विविहनियमविवेल्लिया गुणपवित्ती आसण्णा कोमुदी रत्ती । लागद्दाराणि अवंगु| पाणिमाघाय घोसणा वत्ता ॥६३॥ धम्मोव गु(सु)हकरणी निण्हयकरणी य अहम्मस्स । उवबसे दाणमइयं वदाणि संघस्स तेण १ ख० वग्गा।
॥३०॥
DODe200CCORD
___JainEducation MAY
For Private & Personal Use Only
ANTrinelibrary.org