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सं० तरंगबईकहा
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देह पसीयह अञ्जा! जइ देते) नस्थि नियमस्स उवरोहो । होउ सुहस्स पवित्ती धम्मकई मे परिकहेहा ॥५६॥ तो भणइ एवं
धम्मकहा[भव ] भणिया अजा नत्थेत्थ कोइ उवरोहो। सम्बजगजीवहियं धम्म उवासाहमाणस्स ॥ ५७ ॥ दो किर पूयप्पावा दोचिय पुच्छा पावंति एत्थ किर पुणं(गण)। जो सुणइ जो य साहइ अविहिंसालक्खणं धर्म ॥ ५८ ॥ निक्खित्तसत्थवेरो जं होइ निसामओ मुहुत्तमवि । सोऊण जं च गिण्हइ नियम कहगस्स सो लाभो ॥ ५९॥ धम्मकहगो य इयरं अप्पाणं च भवसागरोघाओ। तीरेइ | साहमाणो अविहिंसालक्खणं धम्मं ।। ६०॥ एएण कारणेणं धम्मो उवसाहिउँ पसत्थो त्ति | तं सुणह अणण्णमण्णा जं नाहं तं कहेहामि ॥ ६१ ॥ वेत्ती य करयलतालं दे(दें)तीउ ताउ एकमेक्कस्सा। सब्बाओ बिलयाओ तं अजं पेच्छणमाणाओ ।। ६२॥ संपइयकाम अम्हो अजारूवमइस्स य अमयस्स । अणिमिसदिट्ठीपोह इमीहिं अच्छीहिं पेच्छामो॥६३॥ परिणीए वि य अभिवंदिऊण खुड्डी(ए) सीए सह अजा। ललुमि उवट्ठाणंमि एतासु ए आसणे तत्थ ।। ६४ ॥ताओ वि मुइयमणाउ अजंतह वंदिऊण विणएण । कोट्टिमतलंसि विलया घरणीए समं निविट्ठाओ ।।.६५ ॥ फुट्टविसयक्खरसंपाडियाए सज्झायकरणलहुयाए। भणिईए सा सुभणिया कण्णमणरसायणनिभाए ॥ ६६ ॥ तो साहिउं पयत्ता सव्वजगसुहावहं जिणाणुमयं । जरमरणरोगजम्मणसंसारविणासणं अजा ॥६७॥ सण्णाणदंसणाई पंचमहव्ययमयं विणयमूलं । तवसंजमपडिपुण्णं अपरिमियसुहफलं धम्मं ॥ ६८॥ अह रूवविम्हियमई नाऊण कहाए अन्तरं भणइ । घरिणी कयंजलिउडा संजमनियमुजयं अजं ॥ ६९॥ होउ सुओ मे धम्मो इणमवरं ता पसीय य कहेहि । तमिणं भणामि भयवइ ! तं सुव्बउ मह पसेऊण ॥ ७० ॥रूवालोयणसुहयाई अञ्ज जायाई मज्झ
१ अहिंसालक्षणं । २ जाणामि । ३ वनिताः । १ अ० मयस्स । ५ अ० मि।
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