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साणवि एवं कम्माईणं अगंगया एत्थं । तं चिअ तहासहावं जं तेऽवि अविकखइ तहेव ॥ १०६० ॥ तस्समुदायाओ चिअ तत्तेण तहा विचित्तरूवाओ । इअ सो सिअवाएणं तहाविहं वीरिअं लहइ ।। १०६१ ॥ तत्तो अवसम्मं तओ अ से होइ भावसम्मं तु । तत्तो चरण कमेणं केवलनाणाइसंपत्ती ॥ १०६२ ॥ जिणवयणमेव तत्तं एत्थ रुई होइ दवसम्मत्तं । जहभावा णाणसद्धा परिसुद्धं तस्स सम्मत्तं ॥ १०३३ ॥ सम्मं अन्नायगुणे सुंदररयणम्मि होइ जा सद्धा । तत्तोऽणंतगुणा खलु विन्नायगुणम्मि बोद्धवा ।। १०६४ ।। तम्हा उ भावसम्मं एवंविहमेव होइ नायवं । पसमाइलिंगजणयं निअमां एवंविहं चैव ॥ १०६५ ॥ ततो अतिवभावा परिसुद्धो हेठ ( होइ ) चरणपरिणामो । तत्तो दुक्खविमोक्खो सासयसोक्खो तओ मोक्खो ॥ १०६६ ॥
सुअधम्मस्स परिक्खा तओ कसाईहिं होइ कायवा । तत्तो चरित्तधम्मो पायं हेउ ( होइ ) त्ति का ऊणं ॥ १०६७ ॥ सुमो असेसविसओ सावज्जे जत्थ अस्थि पडिसेहो । रागाइविअडणसहं झाणाइ अ एस कस सुद्धो ॥ १०६८ ॥ जह मणयकाहिं परस्स पीडा दुढं न कायवा । झाएअवं च सया रागाइविवक्खजालं तु ॥ १०६९ ॥ लोण सविसओ सावज्जे जत्थ होइ पडिसेहो । रागाइविअडणसहं न य झाणाईवि तह (य) सुद्धो ॥ १०७० ॥ जह पंचहिं बहु एहि व एगा हिंसा मुसं विसंवाए । इच्चाओ झाणम्मि अ झाएअवं अगाराई ॥ १०७१ ॥ सइ अप्पमत्तयाए संजमजोएसु विविधभेएसु । जा धम्मिअस्स वित्ती एअं वज्झं अणुद्वाणं ॥ १०७२ ॥
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