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________________ श्रीपञ्चव. २ प्रतिदिनक्रिया प्रत्याख्यानशुद्धयः स्वाध्यायगुणा ॥२६२॥ ROCROSSOS SEUSSAROSŁUG जह जह सुअमवगाहइ अइसयरसपसरसंजुअमपुवं । तह तह पल्हाइ मुणी नवनवसंवेगसद्धावं ॥५६०॥ नाणाणत्तीअ पुणो दंसणतवनियमसंजमे ठिच्चा। विहरह विसुज्झमाणो जावजीवंपि निकंपो॥५६१॥दारं॥ बारसविहम्मिवि तवे सभितरबाहिरे कुसल दिटे। नवि अत्थि नवि अ होही सज्झायसमं तवोकम्मं ॥५६२॥ दारं ॥ एत्तो चिअ उक्कोसा विन्नेआ निजरावि निअमेणं । तिगरणसुद्धिपवित्तीउ हंदि तहनाणभावाओ ॥५६३॥ जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुआहि वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं ॥ ५६४॥ आयपरसमुत्तारो आणावच्छल्लदीवणाभत्ती । होइ परदेसिअत्ते अवोच्छित्तीय तित्थस्स ॥ ५६५ ॥ एत्तो तित्थयरत्तं सबन्नुत्तं च जायइ कमेणं । इअ परमं मोक्खंगं सज्झाओ होइ णायचो ॥५६६ ॥ दारं एसो य सया विहिणा कायबो होइ अप्पमत्तेणं । इहरा उ एअकरणे भणिया उम्मायमाईआ ॥ ५६७ ॥ उम्मायं व लभिज्जा रोगायक व पाउणे दीहं । केवलिपन्नत्ताओ धम्माओवावि भंसिज्जा ॥ ५६८॥ लहुगुरुगुरुतरगम्मि अ अविहिम्मि जहकम इमे णेया। उक्कोसगाविहीओ उक्कोसो धम्मभंसोत्ति ।। ५६९ ॥ जोग्गाण कालपत्तं सुत्तं देअंति एस एत्थ विही। उवहाणादिविसुद्धं सम्मं गुरुणाविसुद्धेणं ॥५७०॥ सूचागाहा। मुत्तस्स होति जोग्गा जे पवनाएँ नवरमिह गहणे । पाहन्नदंसणत्थं गुणाहिगतरस्स वा देयं ॥ ५७१ ॥ छलिएण व पचनाकाले पच्छावि जाणिअमजोग्गं । तस्सवि न होइ देअंसुत्ताइ इमं च सूएइ ॥ ५७२॥ ॥२६२॥ Jain Education Inter For Private & Personal Use Only | www.jainelibrary.org
SR No.600005
Book TitlePanchvastukgranth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size12 MB
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