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________________ श्रीपञ्चव. २ प्रतिदिनक्रिया ॥२५५॥ MALEGACCORRIGAM खीरं दहि नवणीयं घयं तहा तिल्लमेव गुड मज । मह मंसं चेव तहा ओगहिमगं च दसमी तु ॥ ३७१॥ भोजनगोमहिसुहिपसूणं एलग खीराणि पंच चत्तारि । दहिमाइआई जम्हा उद्दीणं ताणि नो हुंति ॥ ३७२ ॥ चत्तारि हंति तिल्ला तिलअयसिकुसुंभसरिसवाणं च । विगईओ सेसाईडोलाईणं न विगईओ ॥ ३७३ ॥ दवगुडपिंडगुला दो मजं पुण कट्ठपिट्ठनिप्फन्नं । मच्छिअ-पोत्तिअ-भामरभेअंच तिहा महं होइ ॥ ३७४ ॥ जलथलखहयरमंसंचम्मं वस सोणिअंतिभेअंपि।आइल्ल तिण्णि चलचल ओगाहिमगाइ विगईओ॥३७५ ॥ सेसा ण हुँति विगई अजोगवाहीण ते उ कप्पंति । परिभुजति न पायं जं निच्छयओन नजंति ॥ ३७६॥ एगेण चेव तवओ पूरिजइ पूअएण जो ताओ। बीओवि स पुण कप्पइ निविगह अ लेवडो नवरं ॥३७॥18 दहिअवयवो उ मंथू विगई तकं न होइ विगईओ । खीरं तु निरावयवं नवणीओगाहिमं चेव ॥ ३७८ ॥ घयघट्टो पुण विगई वीसंदणमो अ केइ इच्छंति । तिल्लगुलाण निविगई सूमालिअखंडमाईणि ॥ ३७९ ॥ मजमहणोण खोला मयणा विगईओ पोग्गले पिंडो। रसओ पुण तदवयवो सो पुण नियमाभवे विगई॥३८०।। खजूरमुद्दियादाडिमाण पिल्लुच्छुचिंचमाईणं । पिंडरसय न विगइओ नियमा पुण होंति लेवकडा ॥ ३८१॥ एत्थं पुण परिभोगो निविहआणपि कारणाविक्खो। उक्कोसगवाणं न तु अविसेसेण विन्नेअं॥ ३८२॥ | ॥२५॥ विगई परिणइधम्मो मोहो जमुद्दिजए उदिण्णे अ। सुहृवि चित्तजयपरो कहं अकजे न वहिहिई ? ॥३८॥18 दावानलमज्झगओ को तवसमट्टयाएँ जलमाई । संतेऽविन सेविजा मोहानलदीविए उ(वु)वमा॥३८४॥ Jain Education in For Private & Personal Use Only R www.jainelibrary.org
SR No.600005
Book TitlePanchvastukgranth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size12 MB
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