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A3-45
श्रीपञ्चव. २प्रतिदिनक्रिया
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॥२५४॥
परिणाम विसुद्धीए विणा उ गहिएऽवि निजराथोवा। तम्हा विहिभत्तीए छंदिज तहा वि(चि)अत्तिजा॥३४॥
भोजनआहरणं सिद्विद्गं जिणिंदपारणगऽदाणदाणेसु । विहिभत्तिभावऽभावा मोक्खंगं तत्थ विहिभत्ती॥३४८
द्वारं वेसालिवासठाणं समरे जिण पडिम सिडिपासणया। अइभत्ति पारणदिणे मणोरहो अन्नहिं पविसे ॥३४९॥
जा तत्थ दाण धारा लोए कयपुन्नउत्ति अ पसंसा।
केवलिआगम पुच्छण को पुण्णो ? जिण्णसिट्ठित्ति ॥ ३५० ॥ युगलं ॥ इअरे उनिअट्ठाणे गंतूणं धम्ममंगलाईअं। कडेति ताव सुत्तं जा अन्ने संणिअति ॥ ३५१॥ धम्मं कहण्ण कुजं संजमगाहं च निअमओ सन्वे । एद्दहमित्तं वरुणं सिद्धं जं जंमि तित्थम्मि ॥ ३५२ ॥ दिति तओ अणुसहि संविग्गा अप्पणा उ जीवस्स । रागद्दोसाभावं सम्मावाय तु मन्नंता ॥ ३५३॥ बायलीसेसणसंकडंमि गहणंमि जीव ! न हु छलिओ। इहि जहन छलिजसि भुंजतो रागदोसेहिं ॥ ३५४ ॥ रागहोसविरहिआ वणलेवाइउवमाइ भुंजंति । कड्डित्तु नमोकारं विहीऍ गुरुणा अणुन्नाया ॥ ३५५॥ निद्धमहुराइ पुच्विं पित्ताईपसमणट्टया भुंजे । बुद्धिवलवद्धणट्ठा दुक्खं खु विगिंचिउं निद्धं ॥ ३५६ ॥ अह होज निद्धमहुराइं अप्पपरिकम्मसपरिकम्मेहिं । भोत्तूण निद्धमहुरे फुसिअ करे मुंचाहाकडए ॥३५७॥ है। ॥२५४ ॥
कुकुडि अंडगमित्तं अहवा खुड्डागलंबणासिस्स । लंबणतुल्ले (मित्तं) गेण्हा अविगिअवयणो उ रायणिओ ॥ ३५८॥
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