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श्रीपञ्चव. २ प्रतिदि. नक्रिया
॥२५२॥
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जस्स य जोगोत्ति जइ न भणंति न कप्पई तओ अन्नं । जोग्गपि वत्थमाई उवग्गहकरंपि गच्छस्स ॥ २९५॥ मिक्षागमसाधण जओ कप्पो मोत्तूणं आणपाणमाईणं । कप्पइ न किंचि काउंघित्तुं वा गुरुअपुच्छाए ॥ २९६॥ नविधिः हिंडंति तओ पच्छा अमुच्छिया एसणाएँ उवउत्ता। दवादभिग्गहजुआ मोक्खट्ठा सबभावेणं ॥ २९७ ॥ लेबडमलेवडं वा अमुगं दवं व अज घिच्छामि । अमुगेण व दवेणं अह दवाभिग्गहो चेव ॥ २९८ ॥ अट्ट उ गोअरभूमी एलुगविक्खंभमित्तगहणं च । सग्गामपरग्गामे एवइअ घरा उ खित्तंमि ॥ २९९॥ उज्जुग १गंतुं पञ्चागइआरगोमुत्तिआ ३ पयंगविही४।पेडा५य अद्धपेडा ६ अभितरवाहि संबुक्का८॥३०॥ काले अभिग्गहो पुण आई मज्झे तहेव अवसाणे । अप्पत्ते सइ काले आई विति मज्झ तइअंते ॥३०१॥ दिंतगपडिच्छगाणं हविज सुहुमंपि मा हु अचिअत्तं । इइ अप्पत्त अईए पवत्तणं मा इतो मज्झे ॥३०२॥ उक्खित्तमाइचरगा भावजुआ खलु अभिग्गहा हुँति । गाअंतो व रुअंतो जं देइ निसण्णमाई वा ॥ ३०३॥ ओसकण अभिसक्कण परंमुहोऽलंकिओ व इयरोवि । भावऽण्णयरेण जुओअह भावाभिग्गहोनाम ॥३०४॥ पुरिसे पडुच्च एए अभिग्गहा नवरि एत्थ विष्णेआ। सत्ता विचित्तचित्ता केई सुझंति एमेव ॥ ३०५ ॥ जो कोइ परिकिलेसो जेसिं केसिंचि सुद्धिहेउत्ति । पावइ एवं तम्हा ण पसत्थाभिग्गहा एए ॥ ३०६॥ ॥२५२॥ सत्थे विहिआ निरवज पयइ मोहाइधायणसमत्था। तित्थगरेहिवि चिण्णा सुपसत्थाऽभिग्गहा एए॥३०॥ सुत्तभणिएण विहिणा उवउत्ता हिंडिऊण ते भिक्खं । पच्छा उविति वसहिं सामायारिं अभिदंता ॥३०८॥gI
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