SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 521
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education Interne खोडणपमज्जवेलासु चेव ऊणाहिआ भुणेअद्दा । चोदगः- कुक्कुड अरुणपगासं परोप्परं पाणिपडिलेहा ॥ २५५ ॥ देवसिया पडिलेहा जं चरिमाएत्ति विग्भमो एसो । कुक्कुडगादिसिस्सा तत्थंधारंति ते (तो) सेसा ॥ २५६ ॥ एए उ अणाएसा अंधारे उग्गएऽवि हु ण दीसे । मुहरयणिसिज्जचोले कप्पतिअ दुपट्ट थुइ सूरो ।। २५७ ॥ जीवदया पेहा एसो कालो इमीऍ ता णेओ । आवस्सयथुइअंते दसपेहा उट्ठए सूरो ।। २५८ ॥ एए उ अणादेसा एत्थ असंबद्धभासगंपि गुरू । असढं तु पण्णविज्जत्तिखावणट्ठा विणिद्दिट्ठा ।। २५९ ।। गुरुपचक्खाणगिलाणसे हमाईण पेहणं पुद्धिं । तो अप्पणी पुढमहाकडाई इअरे दुवे पच्छा || २६० ।। पुरिसुवहिविवचासो सागरिअ करिज्ज उवहिवच्चासं । आपुच्छित्ताण गुरुं पहुच माणेतरे वितहं ॥ २६९ ॥ अप्पडिले हियदोसा आणाई अविहिणावि ते चेव । तम्हा उ सिक्खि अवा पडिलेहा सेविअद्या व ॥ २६२॥ दारं |१| पडिलेहिऊण उवहिं गोसंमि पमज्जणा उ वसहीए । अवरण्हे पुण पढमं पमजणा पच्छ पडिलेहा ॥ २६३ ॥ सही मजा वक्खेवविवज्जिएण गीएण । उवउत्तेण विवक्खे नायवो होइ अविही उ ॥ २६४ ॥ सह पहले मित्रणा चोप्पडमाइरहिएण जन्तेणं । अविद्धदंडगेणं दंडगपुच्छ्रेण नन्नेणं ॥ २६५ ॥ अपमज्जमि दोसा जणगरहा पाणिघाय मइलणया । पायपमज्जण उबही धुवणाधुवणंमि दोसा उ ।। २६६ ।। चरिमाए पोरिसीए पत्ताए भायणाण पडिलेहा । सा पुण इमेण विहिणा पन्नत्ता वीयरागेहिं ॥ २६७ ॥ ती आणागयकरणे आणाई अविहिणाऽवि ते चेव । तम्हा विहीऍ पेहा कायवा होइ पत्ताणं ॥ २६८ ॥ For Private & Personal Use Only w.jainelibrary.org
SR No.600005
Book TitlePanchvastukgranth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy