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________________ A G आयंबिले अनियमो आइण्णं जेसिमावलीए उ । ते कारविंति नियमा सेसाणवि नस्थि दोसा उ ॥१५२॥1 लोगुत्तमाण पच्छा निवडइ चलणेसु तह निसपणस । आयरियस्स य सम्म अण्णेसिं चेव साहूणं ॥१५३॥ वंदंति अजियाओ विहिणा सड्ढा य साविआओय। आयरियस्स समीवंमि उवविसइ तओ असंभंतो॥१५४॥ भवजलहिपोअभूअं आयरिओ तह कहेइ से धम्मं । जह संसारविरत्तो अन्नोऽवि पवजए दिक्खं ॥१५५॥ भूतेसु जंगमत्तं तेसुऽवि पंचिंदिअत्तमुक्कोसं । तेसुवि अमाणुसत्तं माणुस्से आरिओ देसो ॥१५६ ॥ देसे कुलं पहाणं कुले पहाणे अजाइमुक्कोसा । तीएवि रुवसमिद्धी रूवे अबलं पहाणयरं ॥ १५७॥ होइ बलेऽवि अ जी जीएऽवि पहाणयं तु विण्णाणं । विण्णाणे सम्मत्तं सम्मत्ते सीलसंपत्ती ॥१५८॥ सीले खाइअभावो खाइअभावेऽवि केवलं नाणं । केवल्ले पडिपुन्ने पत्ते परमक्खरो मोक्खो ॥ १५९॥ पण्णरसंगो एसो समासओ मोक्खसाहणोवाओ। एत्थ बहुं पत्तं ते थेवं संपावियति ॥ १६०॥ ता तह कायचं ते जह तं पावेसि थेवकालेणं । सीलस्स नत्थऽसझं जयंमि तं पाविअं तुमए ॥ १६१ ॥ लभ्रूण सीलमेअं चिंतामणिकप्पपायवऽभहिअं। इह परलोए अतहा सुहावहं परममुणिचरिअं॥१६२॥ एअंमि अप्पमाओ काययो सइ जिणिंदपन्नत्ते । भावेअव्वं च तहा विरसं संसारणेगुपणं ॥१६३॥५। आह विरइपरिणामो पञ्चजा भावओ जिणाएसोजता तह जइअवं जह सो होइत्ति किमणेण? ॥१६४॥ सुबह अएअवइअरविरहेण वि स इह भरहमाईणं । तयभावंमि अभावो जं भणिओ केवलस्स मुए॥१९५।। RORROGRe -4-4 - पञ्चव.४२ Jan Education For Private & Personal Use Only |www.jainelibrary.org
SR No.600005
Book TitlePanchvastukgranth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages634
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size12 MB
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