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________________ आचार SCRE दिनकरः ॥१२७॥ REHOSHRSS पमज्जंतो॥२७॥ छक्कायरक्खणट्ठा पायग्गहण जिणेहि पन्नत्तं । जे य गुणा संभोए हवंति ते पायग्गहणे वि ॥२८॥ तणगहणानलसेवा निवारणं धम्मसुक्क जाणट्ठा । दिट्ट कप्पग्गहणं गिलाणमरणया चेव ॥२९॥ वेउव्व वाउडे वाइए वन्हीक्खद्ध पजणणे चेव । तेसिं अणुग्गहट्ठा लिंगुदयट्ठा य पट्टो उ ॥३०॥अथ प्रत्येक बुद्धोपकरणानि अवरे वि सयंवुद्धा हवंति पत्तेअ बुद्धमुणिणोवि । पढमा दुविहा एगे तित्थयरा तदियरा अवरे ॥ ३१॥ तित्थयरवजिआणं बोही १ उवही २ सुअं च ३ लिंगं च ३ । मेआई तेसिं बोहि जापस्सर णाइणा होई ॥ ३२ ॥ मुहपत्ती १ रयहरणं २ कप्पतिगं ५ सत्तपायनिजोगे १२ । इय बारसहा उवही होइ सयं वुद्धसाहणं ॥३३॥ हवइ इमेसि मुणीणं सुत्ताहीअं सुअं अहब नेअं । जइ होइ देवसया से लिंगं अप्पइ अहव गुरुणो ॥ ३४ ॥ जइ एगागीवि हु विहरणक्खमो तारिसी व से इच्छा । तो कुणइ त मन्नह गच्छवास मणुसरह निअमेण ॥ ३५ ॥ पत्ते अवुद्धसाहण होइ वसहाइ दंसणे बोही। पुत्तियरयहरणेहिं तेसिं जहन्नो दुहा उवही ॥ ३६ ॥ मुहपत्ती रयहरणं तह सत्तय पत्तयाइ निजोगो । उक्कोसो वि नवविझे सुअं पुणो पुन्वभवगहि अं ॥ ३७॥ इक्कारस अंगाई जहन्नओ होइ तं तहोकोसुं । देसेण असंपुन्नाई हंति पुन्वाइं दस तस्स ॥ ३८ ॥ लिंगं तु देवयादइ होइ कइयावि लिंगरहिओ वि । एगागि चिय विहरइ नागच्छे गच्छवासे सो॥ ३०॥ पत्ते अ बुद्धमुणिणो इमाइमाइ एअमुवगरणं । अर्धगाथैव ॥ ४०॥ अथ साध्वीनामुपकरणानि यथा-उवगरणाई चउदस य चोलपट्टाइ कमटयजआई। अजाणवि भणिआई अहिआणि अ X॥१२७॥ ऊ र Jain Education in real For Private & Personal Use Only Nainelibrary.org
SR No.600003
Book TitleAchar Dinkar
Original Sutra AuthorVardhmansuri
Author
PublisherJaswantlal Girdharlal & Shah Shantilal Tribhovandas Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages566
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual_text, & Conduct
File Size11 MB
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