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आचार
दिनकरः
॥३४२॥
भाद्रवासुदि ए ९ मु० सुविहि १२मास आश्विनवदि ए १३ ना. गर्भापहारस्स ए १५ ना० नेमिजिणस्स
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देहिनाम् ॥६॥ चन्द्रस्य अयनं हानिवृद्धिभिस्तद्भवं तच्चान्द्रायणं । यव-विभागः२ वन्मध्यं स्थूलमाद्यन्तहीनं मध्यं यस्य तद्यवमध्यं । वज्रवन्मध्यं सूक्ष्म-
IIपोविधि: माद्यन्तस्थूलं मध्यं यस्य तद्वज्रमध्यं । अत्र स्थूलहीनते दत्तिग्रासबहुत्वस्तोकत्वप्रतिबद्धे । पूर्व यवमध्यचान्द्रायणे शुक्ल प्रतिपदमारभ्य एकैकग्रासदत्तिवृद्ध्या पूर्णिमायावत्पञ्चदशसंख्ये कवलदत्ती जायेते श्राद्ध-| यत्योः । ततः कृष्णप्रतिपदमारभ्यैकैकहान्या यावदमावास्यां श्राद्धयत्योरेकैकग्रासदत्ती जायते । इति यवमध्यचान्द्रायणं ॥ वज्रमध्ये तु| कृष्णप्रतिपदमारभ्य पञ्चदशसंख्यग्रासदत्तिभ्यामेकैकहान्या श्राद्धयत्योरमावास्यामेकैकग्रासदत्ती जायेते। ततः शक्लप्रतिपदमारभ्यैकैकग्रासद
आश्विनसुदि चवणं नमिनाहस्स
शुक्ल तिथि
यवमध्यचान्द्रायणतपः शुक्लपक्षेवृद्धिः
यवमध्यचान्द्रयणतपः कृष्णपक्षेहानिः | २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १.११ १२ १३ १४ १५१५१४१३१२१११०९८७६५/५ ३२|क्रष्णपक्षः क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क वज्रमध्यचान्द्रायणतपः कृष्णपक्षेहानिः
वज्रमध्यचान्द्रायणतपः शुक्लपक्षेवृद्धिः
॥३४२॥
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