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आचार
दिनकरः
॥ १२२ ॥
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मुहम्पमाणेण निष्पन्नं ॥ २१ ॥ जो मागहो अ पत्थो सविसेसयरं तु मत्तगपमाणं । दोस्रुवि दव्वग्गहणं वासावासे अ अहिगारो ॥ २२ ॥ सूओ अणस्स भरियं दुगाउसद्वाण मागओ साहू । भुंजइ एगट्ठाणे एअं | किर मत्तगपमाणं ॥ २३ ॥ दुगुणो चउरगुणो वा हत्थो चउरस्सु चोलपट्टो अ । धेरज्जु वाणणट्ठा सण्हे थूलम्मिय विसेसो ॥ २४ ॥ संघारुत्तरपट्टो अहारजा य आयया हत्था । दुन्हंपि अवित्थारो हत्थो चउरंगुर्ल चेव || २५ || उपकरणानामर्थो यथा - आयाणे निरुखेवे द्वाणनिसी अण तु अट्ठ संकोए । पुवि पमजणट्ठा लिंगट्ठा चेव रयहरणम् || २६ || संपाइमरयरेणु पमजणट्ठा वयंति मुहपत्तिं । नासं मुहं च बंधइ तीए वसई पमज्जंतो ॥ २७ ॥ छक्कायरक्खणट्ठा पायग्गहणं जिणेहिं पन्नत्तं । जे य गुणा संभोए हवंति ते पायग्गहणे वि ॥ २८ ॥ तणगहणानलसेवा निवारणं धम्मसुक्क जाणा । दिहं कप्परगहणं गिलाणमरणट्टया चेव ॥ २९ ॥ ★वेउव्व वाउडे वाइए यन्ही क्खद्ध पज्जणणे चेव । तेसिं अणुग्गहट्ठा लिंगुदयट्ठा य पट्टो उ ॥ ३० ॥ अथ प्रत्येकबुद्धोपकरणानि अवरे वि सयंबुद्धा हवंति पत्ते बुद्धमुणिणोवि । पढमा दुविहा एगे तित्थयरा तदियरा अवरे ॥ ३१ ॥ तित्थयरवज्जिआणं बोही १ उबही २ सुअं च ३ लिंगं च ४ । मेआई तेसिं बोहि जाइस्सरइणा होइ ॥ ३२ ॥ मुहपत्ती १ रयहरणं २ कप्पतिर्ग ५ सत्तपायनिज्जोगे १२ । इय बारसहा उबही होइ सयं बुद्धसाहूणं ॥ ३३ ॥ हवइ इमेसि मुणीणं सुत्ताहीअं सुअं अहब ने अं । जइ होइ देवसया से लिंग अप्प अहव गुरुणो ॥ ३४ ॥ जइ एगागीवि हु विहरणक्खमो तारिसी व से इच्छा | तो कुणइ त मन्नह
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विभागः १
अहोरात्र
चर्याविधिः
॥ १२२ ॥
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