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________________ खुश जाहेरात. कर्ण रोग नाशक तेल । इस दवा से कानों का बहरापन, पीव का बहना, जलन होना, सनसनाहट, खुट २ होना सब दूर होते हैं । की० 1 ) एकदर्जन 2||) डा० अ० खांसी का क्षार । इस से खुश्क या तर खांसो स्वांस कफ आदि सब दूर होते हैं । १ शी० ।। ) to बद करने की । इस से सब प्रकार का अतीसार दस्तों का होना बंद होता है | को० ॥ ) ६० ५) रु० दवा तिजारी की । यह तिजारी की तो शर्तिया दवा है ही पर इस से चौथिया इकतस जाड़े का ज्वर भी जाता रहता है. की० ॥1) डा०|) सतत बटिक । इस से फसली ज्वर आदि सब ज्वर यकृत् तिल्ली रोग समूल नष्ट होते हैं और ज्वर की संसार में इस से बढ़ कर दवा नहीं है. की० ॥) डा० ।) दर्जन ५) गंधकवटी बालकों की ॥ इस गोली को रोजीना बालकों को खिलाते रहने से बालक के पास कोई भी रोग नहीं आता है। हाजमा बढ़ाती है और भूख खूब खुल कर लगती है तथा बालक हृष्ट पुष्ट होजाता है. और खूब दूध पोने लगता है. प्रत्येक गृहस्थ को एक शोशी अवश्य पास रखना चाहिये | फी० ॥) डा०|) दवा सफेद दागों की । शरीर में जो सफेद २ चकते होते हैं, वह एक तरह का कोढ़ होता है। हमारी दवा से यह समूल नष्ट होजाता है. की० फी सी १) डा० ।) प्रदरान्तक चूर्ण | इस दवा से स्त्रियों का श्वेत तथा लाल प्रदर फौरन दूर हो जाता है, और
SR No.546252
Book TitleJain Panchang 1916
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasen Jain Vaidya
PublisherChandrashram
Publication Year1916
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Panchang, & India
File Size7 MB
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