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________________ नांदगांवमें बम्बई प्रां० सभा। (३) डा • गौडके विवाह बिलका घोर विरोध । नांदगांव (नासिक)में वैशाख सुद १-२ (४) तीरे प्रस्ताव। जगह २ विरोध करना। ३-४ को वेदी प्रतिष्ठा व मेले के समय बम्बई (द) धर्मक्षा व देशकी दरिद्रता दूर करनेके । दि. जैन प्रां समा व महाराष्ट्र मा० दि० लिये विदेशी वस्त्र पहरनेका त्याग करें व अन्य जैन खंडेलवाल समाका संयुक्त अधिवेशन हुआ वस्तु भी महातक बने स्वदेशी है उपयोग था जिसमें प्रांतिक समाके शेठ जीवरान गौ-म लावें। चंद दोशी सोलापुर व खंडेलवाल समाके पं० (६) जहां २ मंदिर में २० वार्षिकसे पन्नालालनी सोनी सभापति हुए थे। एक तो अधिक आय हो उसकी अधिक मायका कमसे। प्रांतिक सभा व दुसरी जातीय समा देनों का कम आधा भाग दूसरे मंदिरके जीर्णोद्धारमें खर्च संयुक्त अधिवेशन हो ही नहीं सकता तथा करनेकी प्रेरणा। संयुक्त हो तो भी एक समामें दो (७) बालदर', वृद्धविवाह, कन्या विक्रयादि समापति किसी भी अवस्थामें नहीं होतक्ते बंद करनेकी पंचायतों को प्रेरणा। तो भी संयुक्त अधिवेशन करके दो (८) प्रबंध कमेटीका र सभासदोंका चुनाव सभापति किये गये। यहां खंडेलवालोंके सिवाय इसमें जनमित्र के संपादक ब्र० शीतलप्रसादजीके दूसरे तो इनेगिने ही महाशय उपस्थित होंगे स्थान में पं बंशीधर शास्त्री सोलापुरको नियुक्त और सबजेक्ट कमेटी के मेम्बर खंडेलवाल थे या किये गये । इसका स्थान पर प्रबल विरोध अन्य जातिय मी उसमें सामिल थे यह मालूम हो रहा है। नहीं हुमा । समामे जो जो प्रस्ताव हुए हैं वे (१०) कोलार के मामले पर ग्वालियर नरेशको सब मामूलीही हैं व सिर्फ ई प्रां० दि० जैन धन्यवाद । समाकी प्रबंध कमेटी का नया चुनाव किया (११. १२) कुंथलगिरि व मांगीतुंगीका हिजिसमें जैनमित्रके संपादक ब्र. शीतलप्रसाद साव प्रबंध ठीक करनेकी तीर्थक्षेत्र व मेटीको सुचना। जीके स्थानपर पं. बंशीधर शास्त्री सोलापुरको नियत किये हैं जिससे सारी समाज में अशांति (१३) है सुर सार श्रवणबेलगोलादिमें फैल रही है जिसका परिणाम अत्यंत चुगका म्यू० उपसम पति चुनेका अधिकार प्रजाका महाकको ही क्योंकि उनका आनेकी पूर्ण संभावना है। अधिकार है ऐसी म्है सुर सरिसे प्रार्थना । समाके प्रस्तावों का सारांश इस प्रकार है(१) वीर सं २४१८की रिपोर्ट पाप्त । गृहस्थ धर्म(२) सेठ रामचंद नाथा, पं० मेवारामनी व दूसरीवार छप चुका है। बाइन्डिग होकर तैया रा० ब० माणिकचंदनी सेठीवी मत की होगया है । मु० १॥) सजिल्द १) मृत्युका शोक। मैनेजर, दिगम्बर जैन पुस्तकालय-सूरन
SR No.543185
Book TitleDigambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size10 MB
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