SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८ क.. >> दिगंबर जैन कार्तक सुद श्रीना बुजरोग मित्र शा. ठाकोरदास कस्तुरचंदे खास मदद करी छे, तेमनो आ स्थळे आभार मानीए छीए. वळी लडाईना हींगामने ली हाल कागळना भावो पुष्कळ वधी गया छे, छतां पण अमारा अनेक वांचकोनी आग्रहपूर्वक सूचनाने मान आपवा खातर भारे खर्च करीने पण आ अंकमांना लगभग बधां चित्रो कागळनी एक बाजुए आपेलां छे, जेथी आशा छे के वांचकोने संतोष थशेज हवे मार्गशीर्ष मासनो अंक छूटो बहार पडशे नहि, पण मार्गशीर्ष अने पोषनो डबल अंक पाष सुद १ उपर बहार पडशे. १] १५ उपर प्रकट थशे, छतां पण १थी ते आ अंक प्रकट थतां सुधीमां अमारा . पर खास अंकनी मांगणीनो जे गंजावर पत्रव्यवहार आवी पडेलो छे, तेथी एटलं तो स्पष्टपणाय छे के खास अंक जोषानी अने वांचबानी आतुरता घणीज छे, पण आ अंक माटे मटलां बधां साहित्यो एकठां करवानां हतां के पुष्कळ पत्रव्यवहार, खटपट अने उतावळ करवा छतां पण आ अंक प्रकट करतां कार्तक बद ९ थई छे, अने जो बधाज ग्राहकोनी फी अंगाउथी वसूल आवी गई होत तो एज दीने बधाने रवाना थई जात, पण अमारे दिलगीरि साथै जणाववुं पडे छे के, मात्र ३००-३५० ग्राहकोनुंज लवाजम वसूल थएउ होवाथी तेटलाज आ अंक तरत मोकलवामां आव्यो छे अने बाकीना मेम्बरो तथा जुना नवा आशरे १५००-१६०० ग्राहकोने घणीज श्री वी. पी. थी मोकळाय छे, रजीस्टर्ड न्युपेपरना दरथी एकज ऑफीसे वी. पी. आपी शकाय अने अत्रेनी सीटी ऑफीस रोजनां ५० वधु वी.पी. स्वीकारी शकती नहोती, जेथी वी. पी. रवाना थतां महीनो दो हीनो चीती जाय, जेथी अमोए पोस्टल सन्टेन्ट मारफते पोस्टमास्तर करने अरजी करवाथी तेओ साहेबे आ पत्रना वी. पी. अत्रेनी त्रण ऑफिसोए जना १००-१०० लेवानी कायमनी खास भवस Permanent - Special Arrangement करी आपी छे, जेथी रोजना ३०० वी. पी. रवाना थाय छे, तेथी बधां ग्राहकोने चार पांच दिवसमांज खास अंक वी. पी.थी मळी जशेज. आ ओर्डर मळवाना कामां अना श्वे. जैन बंधु अने अमारा पिता * ++ * प्रिय हिन्दी पाठकगण ! हमारी मातृभाषा गुजराती है और हमने हिन्दी भा हिन्दी ग्राहकों निवेदन | षाका खास कुछ ज्ञान प्राप्त नहीं किया है और सूरत जैसे शहर में बम्बई आदि जैसी हिन्दी छपानेकी सुभीता नहीं है, तौभी हमारे मात्र परिचयद्वारा हमने हिन्दी भाषाकें लेखों लिखने और ७ भाषाके लेखों प्रकट करने का साहस किया है जिसमें अनुमान है कि माषाशुद्धि, व्याकरण शुद्धिं व प्रुफ संशोधनमें अनेक त्रुटिएं रही होंगी, जिसकी ओर आप ध्यान न देकर इस अंक मेंसे 'हंसक्षीरकी नांई' सार ग्रहण करके हमारे उत्साहको बढ़ावेंगे ऐसी हमें पूर्ण उम्मेद हैं । गत वर्षस इस अंक में हिन्दी लेखोंकी विशेषता की गई है। और अब 'दिगंबर जैन ' के आगामी अंकों में भी हिन्दी भाषाके लेखों विशेष रुपसे प्रकट होते रहेंगे और गुजराती लेखों भी बहुत करके देवनागरी लिपिमें प्रकट होंगे ,,
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy