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> दिगंबर जैन. ६ सोलापुरवालोंने सिद्धवरकुट पर प्रतिष्ठा जिससे समाजको लाभ पहुंचे । आपने कराईथी तब १ दिन शेठजीकी प्रिय पुत्री- ७०००) खर्च करके सिद्धवरकूटपर का देहान्त हो गया । इसी समय कुछ धर्मशाला बनवाई, ३०००) रूषभब्रह्मप्रबंधार्थ एक आदमी सिद्धवरकूटसे आया। चर्याश्रमको, ११००) श्राविकाश्रम-बम्बईआपने उस सबकी जराभी परवाह न को, १०००) स्या. महाविद्यालय-काशीको करके आगत पुरुषको कार्य कर रवाना दिया और ४०००) मालवा प्रां. सभाके किया और फिर पुत्री की अन्तिम क्रियाके अधिवेशनमें व्यय किया। यही आपकी गये । यह आपहीके प्रयत्नका फल है कि उदारताका फल है कि श्री सिद्धवरकूटपर श्री सिद्धवरकूट तीर्थक्षेत्र उन्नत दशाको इसी मासमें मालवा दि. जैन प्रांतिक सभापहुंचा है। यह ऐसा दि. जैन सिद्धक्षेत्र का वार्षिकोत्सव बड़ी धूमधामसे हुआ है। है कि जिसके पर्वतनी मालगुजारी दि. श्रीमती बेसरबाईजी इसी तरह धर्म का
जैनियोंकी है और सरकार कुछभी लगान योंमें धनका व्यय करती रहेगी ऐसी हमें ; नहीं लेती। आपने सिद्धवरकुटपर पंचायत पुर्ण उम्मेद है।
की ओरसे मन्दिर बंधवाया है और बड़- (२९) स्वर्गीय मी. वीरचंद राघवजीवाहमें भी मन्दिर बनवाया है। आप बड़े महुवा (काठीयावाड) निवासी आ (श्वे. परोपकारी हैं । सं. १९५३ में अकाल के जैन) वीरनरनुं नाम आखी दुनियामां समय आपने सस्ते भावसे अन्नको बेचा प्रसिद्ध थई गयुं छे. एमनुं विस्तृत जीवनथा । आपके दो पुत्रमेंसे एक पुत्र दया- चरित्र हालमांज 'श्वे. जैन कोन्फरंस चंद्रनी थे जिनका चित्र पाठक देख हेरल्ड'ना महावीर अंकमां प्रकट थयुं छे रहे हैं । दयाचंदजीमें भी पिताके समान पुरे२ जे जोतां जणाय छे के आ महान पुरुषनो सण थे, परंतु आपभी छोटीसी अवस्थामें जन्म सन् १८६४मां थयो हतो. एओए इस संसारको छोड़ गये । आपके स्वर्गवास १८८०मां मेट्रीक अने १८८४मां बी. के पश्चात् आपकी धर्मपत्नी श्रीमती बेसर. ए. नी परीक्षा मुबाईमां रही पसार करी बाईका चित्त संसारसे उदास हो गया है हती, ते वखते समग्र श्वे. जैन समाजमां
और आपने बड़वाहमें कन्यापाठशाला बी. ए. थनार एओ प्रथमज हता! मुंबास्थापित की है और आपका चित्त विद्या- ईमां १८८२मां स्थापित जैन एसोसीएशन दानकी ओर सदैव झुका रहता है। ऑफ इंडियाना सेक्रेटरी वीरचंदभाई नीआप यही चाहती है कि-पूर्वजोंकी गादी माया, पछी एओ धार्मिक कार्योमां ऑगळ कमाईका द्रव्य ऐसे महत्कार्योंमें व्यय हो पडतो भाग लेवा मंडया अने पालीताणा