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१५८ __ सचित्र खास अंक. _ वर्ष ८
अलौकिक जीवनाअधेर जमाना। मोहमें आशक्त हो आलस्य करमें मत फंसो। क्या बड़ा अधेर कलजुगने मचाया देख लो। कर्मको ऊंचा समझ कर्त्तव्य पथ पर तुम लसो॥ जो न देखा था किसीने सो दिखाया देख लो। शांतिदायक विश्व में है एक वह उद्योग ही। आंख सबकी फोड़ कर अंधा बनाया देख लो। मुक्तिका है द्वार भाई कर्मका संयोग ही ॥१॥ धर्म अपना बेच खाया हर किसीने देख लो। अकर्मन्य पुरुष कभी चिन्ता रहित होगा नहीं।
बाल्यविवाह होने लगे बुढ्ढोंकी सादी देख लो।
लोभ कर बेचे पिता कन्याखराबी देख लो ।। स्वार्थ नरका हृदय शीतल कभी हो सकता नहीं ।
कैयक जगह अबला बड़ी भरतार छोटे देख लो। जीवन तुम्हारा अल्प है करना हजारों काम हैं। काम जो करते नहीं उनके नहीं फिर नाम हैं ॥२॥
मूंछोंकी नहीं है रेख घर संतान उनके देख लो।
मांस माता गायका बकरे कटाती सरवशर । अतएव करना काम जिससे नाम होवे विश्वमें।
उनको नचाकर व्याहमें धनका लुटाना देखलो॥ जीव होवेगा सुखी पा शांतिता अमरत्वमें ॥
अन्धे ओ लंगड़े कोड़िया आवें अगर कुछ मांगने। प्रतिदिन पराई हीनवस्थाको हटाया तुम करो। देने लगे वो गालियां थप्पड़ उठाना देखलो । प्रिय वचन बोल अमोल सुखका स्वाद पान किया मानाने
धर्मका तो नाम लेते हि वो थररा जांयगे। __करो ॥३॥
पाप करनेमें जराभी वो नही शरमायगे ॥ 'प्रेम पूरित नम्र भाषण सुधा ही के तुल्य है। लड़नेमें है मजबुत दिल फैयाज उनका देखलो। एक ही नहिं श्रेष्ठ इससे यही रत्न अमूल्य है ॥ मारने मरनेमें वो तैयार है तुम देखलो ॥ दया क्षमता प्रेम ममता स्वर्गके उद्गार हैं। फूटको माता बना घरमें बसाया देखलो । स्वार्थ चोरी झूठ हिंसा नरकके सब द्वार हैं ॥४॥ सार इसमें है यही रोना मेरा तुम देखलो ॥ ज्ञानपी सूर्यकी किरणे तमच्छेदन करें।
धिक्कार ऐसी बुद्धिको अबतो समझलो सोचलो। , सौख्य दर्शाती हुई सब प्राणियोंका दुःख हरें॥ सी. एम. भारतका मजा कुछ रोजमें तुम देखलो॥ न्य को चंद्रसे तुम लोक आलोकित करो।
सी. एम. पाटनी-इन्दौर। डित प्राणियोंके हृदयको शीतल करो॥५॥
धार्मिक कांग्रेस बन्द-इग्लंडमें इस " जल रहा दुःखानि रुपी तापसे । हो रहे दारिद्रके सन्तापसे ॥ साल जा चामिक काग्रस हानवाला था वह
रहा रस पूर्व भवकी वेदना। युद्ध के कारण अब न हो सकेगी। इयोंकी बन्धुओ वह वेदना ॥६॥ ६० लाखका दान-निजाम हैदराबादने शचंद सिंघई, हीराबाग, बम्बई।) युद्ध फंडमें६०लाख रुपया देना स्वीकार किया है।