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________________ mmrrrrrrrr अंक १] > दिगंबर जैन १९ १३५ अगम जलनिधि गर्भमें बेड़ा चला देते हैं वह । बीचमें पड़कर जलधि जो काम देवें गड़बड़ा। जंगलोंमें भी महा मंगल मचा देते हैं वह॥ तो बना देगें उसे वह क्षुद्र पानीका घड़ा। भेद नभ तलका उन्होनें हैं बहोत बतला दिया। बन खंगालेगें करेगें व्योममें बाजीगरी । है उन्होनें ही निकाली तारकी सारी क्रिया।। कुछ अजब धुन कामके करनेकी उनमें हैं भरी। 'कार्य थलको वह कभी नहिं पूछते वह हैं कहां। कर दिखाते हैं असम्भवको वही सम्भव यहां॥ सब तरहसे आज जितने देश हैं फूलेंफलें । उलझनें आकर उन्हें पड़ती हैं जितनी ही जहां। बुद्धि विद्या धन विभब्के हैं जहां डेरे डलें ॥ वे दिखाते हैं नया उत्साह उतनाही वहां॥ वे बनानेसे उन्हीं के बन गये इतने भलें । डाल देते हैं बिरोधी सैकड़ों ही अड़ चलें। वे सभी हैं हाथसे ऐसे सपूतोंके पलें ॥ वह जगहसे काम अपना ठीक करके ही ठलें। लोग जब ऐसे समय पाकर जनम लेगे कभी। जो रुकावट डालकर होवें कोई पर्वत खडा। देशकी और जातिकी होगी भलाई भी तभी ॥ तो उसे देते हैं अपनी युक्तियोसें वह उड़ा॥ प्रेमी' हजारीलाल जैन-आगरा । SHARNATARNAORAMANAND द जैन बंधुओने संदेशो. (२यना२:-. हाथीय माहेश्य सोनासप.) भुश नसावी२, सनी ली२, ४५ on!, કેમ કરો જ્ઞાતિ દુર્ભાગ્ય, દીલે કાંઈ આણે--ક. એ સુધરેલા નર નામ, સુધારે કામ, હામ હદ રાખી; કુધારે ડુબશે દેશ, બને શું ખાખી કેરટ છોડી બને પ્રઢ બને નામુર્દ, સભા શોભાવે; --- धमतए। सध पक्ष, स्वा४ आव।. सड पीर प्रभूना माग ! भडिमांड । ४५!! ध्यो साय मा समा!!! नलिद्वेषभ माम!!! . . -- सर जैन ने भाट, ध धार, भगा सा मा જ્યાં સંપ તણો મહીમાય, રંગ ત્યાં રાજે, મુજ ૧ જે હેય હકોના કામ, રાખજે હામ, દામ દેહથી; મળી કલમેપ કરજે કામ, ગજાવો મહીંથી; १. मावा २. . ३. ॐ वरना. ४. समजुतीय. ५. समाथी.
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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