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________________ ( ८) किसी भी बालक की शीघ्र डाक्टर से शोध कराते हैं परन्तु जब यह मालूम हो जाता है कि उसके शरीर में कोई दोष नहीं है तब उसको एक कोने में एक टेबल पर बिठा कर अलग रखते हैं। उसके मन पसन्द खिलौने और साधन देते हैं। यहां रह कर वह दूसरे बालक कैसा काम करते हैं वह देखता है यहां पर पनका काम उसको सक रूप हो जाता है। जो बालक उद्योगिक और व्यवस्थित बालकों के सामने बलवा करते हैं उनको हम इस तरह से व्यवस्थित करके ठिकाने लाते हैं। अलग रक्खे हुए बालक की बीमार के माफिक सम्हाल ली जाती है । मैं कमरे में रक्खे हुए अकेले बालक के पास जाती हूं उसको प्यार करती हूँ और बाद में काम करते हुए दूसरे बालकों की तरफ दृष्टि फिराती हूं और उनके साथ उनके काम के संबंध में बातचीत करती हूं। _यदि शिक्षा में सच्ची स्वतंत्रता आ जाय तो दूसरी मुश्किलियों के साथ साथ इनाम की प्रथा का भी अन्त आ जायेगा और बालक स्वयं स्फुरणा से स्वतंत्र प्रवृत्ति करता २ स्वाधीनता के मार्ग से जायेगा और उसमें स्वमेव नियमन प्रगट हो जायेगा। साधन मीमांसा मोन्टीसोरी पद्धति में किस बात पर अधिक भार देगा और किस बात पर कम भार देना यह कहना अत्यन्त कठिन है। अक्सर मनुष्य तो ऐसा ही कहते हैं कि सारी पद्धति महत्व पूर्ण है और यह पद्धति सिद्धान्त पर ही रची गई है। दूसरी सब बातें इसमें गौण हैं और उनके बिना काम चल सकता है। मोन्टीमोरी पद्धति के पक्के उपासक यहां तक कहते हैं कि मोन्टीसोरी पद्धति अर्थात् मोन्टीसोरी पद्धति के साधन । इनके बिना मोन्टीसोरी पद्धति से कार्य नहीं हो सकता। अक्सर सहानुभूति दर्शानेवाले मनुष्यों का यह कहना है कि सिद्धान्त और साधन आदि की बात तो ठीक है परन्तु महत्व की बात तो व्यक्तित्व की है। डा० मोन्टीसोरी के व्यक्तित्व के बिना मोन्टीसोरी के सिन्द्धात और साधन दोनों योंहीं पड़े रहते हैं। बहुत से नासमझ लोग यह समझते हैं कि सब कुछ सिखाने में ही है। साधन आदि तो निमित मात्र हैं। बहुत से शिक्षा शास्त्री ऐसी शंका करते हैं कि साधनों द्वारा पद्धति की जो विजय बताई
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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