SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . जेकब पेरेरा । कॉन्डीलॅक के बाद पेरेरा की गिनती आती है । पेरेरा के बाप दादों का मूल स्थान पाटुगीर्ज था परन्तु उसका जन्म स्पेन में हुआ था और वह याहूदी था। अठारवीं सदी बहिरों और गूगों की शिक्षा के लिये प्रसिद्ध है उस समय पेरेरा इस विषय का जाननेवाला एक माननीय मनुष्य हो गया था। अठारह वर्ष की उम्र में वह स्पेन से बोड़ों में किसी काम के लिये आया था वहां पर उसको जन्म से गूंगी एक युवति स्त्री का परिचय हुआ। उसके प्रेम ने इस युवक को बाहेगें मूंगों को मुंह से बुलाने के लिये अपने जीवन का सर्वस्व समपर्ण करने का निश्चय किया। उसने इस कार्य की योग्यता प्राप्त करने के लिये वैद्यकीय विद्या का अभ्यास किया पश्चात् बहिरों गूगों की पाठशाला स्थापित की। उसने अपना सफल प्रथम प्रयोग एक तेरह वर्षिय याहूदी बाला पर किया । धीरज और लगातार होशियारी से उसने अक्षरों का उच्चारण और थोड़े वाक्य बोलते सिखाया। उसके बाद १७४८ में एक दूसरे विद्यार्थी को शिक्षा दी और उसको पेरीस में विज्ञान समिति के सामने रजु किया। उसकी शक्ति से मुग्ध हो कर पंदरवे लुइए ने उसको वर्षासन बांध दिया। १७५० ई० में उसने बोड़ों में बहिरों और गूंगों के लिये मुफ्त शाला स्थापित की। परन्तु वहां से वह दो वर्ष बाद पेरीस गया। सारे यूरोप में से बहिरे गूंगे यहां आते थे। उसके काम की योग्यता देख कर लण्डन की रोयल सोसाइटी ने उसको सभासद बनाया और वह १७८० ई० में मर गया। पेरेरा की योजी हुई पद्धति के हालात का ख्याल नहीं मिलता है। परन्तु सेगुइन ने शोध करके उसके बहुत से सिद्धान्तों को मनुष्य समाज के सामने रक्खा है। हम लोगों की वाणी सुनकर बहरे और गुंगे नहीं बोल सकते हैं परन्तु वे हम लोगों को बोलते देख सकते हैं और बोलते समय हमारे मुंह से जो हलचल होती है। उन हलचलों को देखकर वे बोल सकते हैं। जिस तरह दूसरे लोगों को वे मुंह हीला कर विचार दर्शाते हुये देख सकते हैं इसका परिणाम यह है कि बहिरे गुंगे जो शब्द अपने कान से नहीं सुन सकते हैं उनको आंखों से सुनकर अथवा देखकर भी सीख सकते हैं और इस तरह वे कान के बजाय मांख को काम में ला सकते हैं।
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy