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( ४१ ) और जाति महेनत का आबेहुब चित्र है। शिक्षा के ग्रन्थों में यह एक ऊंची कोटी का ग्रन्थ रह जायगा । इसमें जो नैसर्गिक प्रतिभा है, जो स्वयम् स्फुरणा है जो स्वतंत्र विचार की झलक और मीठाश है वह दूसरे बहुत कम ग्रन्थों में है । यह ग्रन्थ भावी प्रजा का बहुत बड़ा वसीयत ग्रन्थ है। शिक्षा की दुनिया में यह एक अमूल्य रत्न है। इस पुस्तक में स्थान २ पर नवजीवन का आदर्श भरा हुआ है । आजकल के देश २ के युगाचार्य भिन्न २ दृष्टि से प्रजाओं के उद्धार के लिये जो प्रयत्न कर रहे हैं उसी तरह के शिक्षा सम्बन्धी प्रयत्न का यह मूल पुस्तक है इस पुस्तक में जितनी भावना की उन्नति है उतनी ही विज्ञान की गहरी दृष्टि है।
आजकल मोन्टीसोरी पद्धति प्रसिद्ध है यूरोप, अमेरीका और दूसरे सभ्य देशों में इस पद्धति पर बाल मंदिर बढ़ रहे हैं। हिन्दुस्तान में भी इस पद्धति के अनुसार थोड़ी पाठशालाएं प्रयोग कर रही हैं ।
अभी दो चार वर्षों से हर साल लंडन में डा० मॉन्टीसोरी चार महीने का अभ्यासक्रम रख कर मोन्टीसोरी पद्धति का तात्त्विक और व्यवहारिक परिचय देती है इसके अलावा स्थान २ पर जाकर इसी पद्धति पर व्याख्यान देती है । नई शालाएं स्थापित करती है और अपनी पद्धति का प्रचार इसी तरह करती है गये वर्ष से मस्टार्डम में से Call of Education नामक त्रिमासिक पत्र अंग्रेजी
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डाक्टर मोन्टीसोरी के सम्पादकत्व में प्रगट होता है अभी वह फ्रान्स, और इटालीयन इन तीन भाषाओ में प्रगट होता है ।
इटली में मोन्टीसोरी पद्धति सीखने के लिये तीन वर्ष का अभ्यासक्रम का एक अध्यापन मन्दिर खोला गया है । लण्डन में मोन्टीसोरी सोसाइटी स्थापित हुई है उसकी तरफ से मोन्टीसोरी पत्रिका हर माह प्रकाशित होती है।
ज्यों डाक्टर मोन्टीसोरी के पूजक शिष्य और अनुयायी हैं त्यों उसके विरोधी भी हैं इन्होंने पुस्तकें लिखी हैं और खूब चर्चा की है डाक्टर मोन्टीसोरी का उन लोगों को एक ही उत्तर है कि मेरी शालाऐं देखो, जाति अनुभव करो, और बाद में मेरे सिद्धान्त में कितना सत्य है उस पर चर्चा करो। परन्तु ज्यों कभी विरोधी भी आशीर्वाद रूप बन जाते हैं त्यों डाक्टर मोन्ट्रीसोरी के सम्बन्ध