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(1 ) रंग जाने पर कपड़े को एक दिन हवा में सुखा कर दूसरे दिन साफ पानी से
धो डालना चाहिये। है कुछ लोग यह कह सकते हैं कि गादा नीला रङ्ग रंगने के लिये परिमाण में दी हुई मात्रा को बढ़ा लेने से कपड़े को बार-बार हल्के रङ्ग से रङ्गना नहीं पड़ेगा । परन्तु इससे कपड़े पर पन्छा रंग नहीं आता, क्योंकि कपड़े पर धीरे धीरे रंग न चढ़ाने से एकसा रंग नहीं चढ़ता और कपड़े को धोने से कुछ घुन कर निकल भी जाता है। .
.... कपड़ों को रंग लेने के बाद रंग को फिर घड़े में रखकर एक लकड़ी से खूने और हीराकष के साथ उसे मिला कर घड़े का संह बन्द करके रख दें। घड़े के पेंदे में मैल के साथ कुछ भनघुल नील पड़ा रहता है। इसे अच्छी तरह एक लकड़ी से हिला देने से सब नील घुल जाता है। कई बार नील के पानी से कपड़े रंग लेने पर रंग फीका पड़ जाता है, इसलिये दो एक दिन बाद थोड़ा नया नील, हीसंकष और चूना (ऊपर लिखे परिमाण के अनुसार) घड़े में मिला देना आवश्यक है।
रंगरेज लोग इसलिये कई घड़ों में नील के रंग को रखते हैं। इन घड़ों को वह मिट्टी में आधे से ज्यादा गाड़ देते हैं जिससे वह बैठ कर ही कपड़े रंग सकते हैं । जिस घड़े में सबसे पुराना रंग है (कई बार रंग चढ़ाने से जिसका रंग बहुन फीका पड़ गया है ) उसी में कपड़ों को पहिले भिगोया जाता है। इस के बाद उन्हें नये रंग में भिगोया जाता है और इस तरह सब से फीके रंग से आरम्भ करके अन्त में सब मे गाढ़े रंग में कपड़े को रंगा जाता है। इसमें थोड़ा भी रंग नष्ट नहीं होता और सब काम में भा जाता है।
(१५) पीला या बसन्ती कच्चा:
पिसी हल्दी-आधी छटांक-१ औंस; पानी ५ सेर-१ गैलन; फिटकिरी-आधा तोला-डेड डाम। . ..!
हल्दी को अच्छी तरह पीस कर पानी में छान लेवें । फिटकिरी को एक दूसरे कटोरे में घोल कर हल्दी के पानी में छोड़ देवें, और कपड़े को इसमें भिगोकर अच्छी तरह निचोड़ डालें । कपड़ा रंग में जितना भीगेगा उतना ही