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________________ (१०) इनको पानी के साथ अच्छी तरह मिलाने के लिये एक बड़ा मिट्टी का पर्तन चाहिये । एक बड़े चौड़े मुंह की नाद या घड़ा इसके लिये ठीक है, जिसमें कपड़ों को डुवाने पर रंग न गिरे और अच्छी तरह भीग जाय । नील बाजार में महंगा विकता है और यह कई एक काम में लाया जाता है, इसलिये जिसमें नील का पानी खराब न हो वैसा काम करना चाहिये । --- __एक बड़े पत्थर या चिनिया मिट्टी के खरिल में नील के ढेले को एक रात भिगोने के बाद उसे धीरे-धीरे पीस कर नील के पानी को एक घड़े में डाल देवें । नील खूब अच्छी तरह भिगोना बहुत ही आवश्यक है । खरिल को कई एक बार धोकर सब नील निकाल लेवें। - सब नील घड़े में डाल लेने पर पानी में होराकष छोड़ देचें । इसके बाद चून को पानी के साथ मिलाकर दूध की तरह चूने के पानी को नील के साथ मिला देवें । चूने में पत्थर के टुकड़े या दसरी कोई वस्तु या मैल आदि दूर कर नील में मिलाना चाहिये । नील और चूने के लिये जो पानी चाहिये वह परिमाण में दिये हुए २५ सेर पानी में से लेमा आवश्यक है। अब घड़े में बाकी मिला देवें । - परिमाण में दी हुई सब वस्तु घड़े में छोड़ देने के बाद एक लम्बी लकड़ी से सब को अच्छी तरह मिला कर मिट्टी के बर्तन का मुंह एक गमले से ढांक देना चाहिये । दूसरे दिन इस नील के पानी को एक लकड़ी से फिर अच्छी तरह मिला कर रख देने से तीसरे दिन यह कपड़े रंगने के लिये तैयार हो जाता है । बर्तन के तले में मैल जम जायगा और ऊपर एक उज्वल नीली सी मलाई पड़ी रहेगी। इस मलाई को हटाने पर नीचे उज्वल कच्चे हरे घास का रंग दिखलाई देगा । यदि अब इस पानी में कपड़ा भिगोया जाय तो वह पहिले फीका हरा और फिर धीरे-धीरे सूखने पर नीला पड़ जायगा । जिस कपड़े पर नीला रंग चढ़ाना हो वह बहुत साफ और मांड रहित होना आवश्यक है-यह बात बहुत पहिले कह दी गई है । माड़ रहने से रंग खून के भीतर भिदेगा नहीं और धोने से ही छूट जायगा । रंगने के पहले कपड़े या सूत को पानी से धो डालना चाहिये। छोटे कपड़े को रंगने के लिये मैल को न छू कर ऊपर के पानी से कपड़े को रंगा जा सकता है। परन्तु बड़े. कपड़े
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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