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सकती। साधकों की प्रथम जरूरत है, कहावत है कि 'न धर्मो धार्मिकन बिना' अपने मंदिर या मूर्तियें बनाना मी जब ही सार्थक होगा कि तब उनके साथ २ इनके पूजने वाले भी रहेंगे। प्रभु की बाह्य भक्ति बहुत की परन्तु अब मार्ग प्रभावना द्वारा प्रभु की अभ्यंतर भक्ति करने की आवश्यकता है। केवल वैद्य के प्रति विनय बहुमान रखने से बिमारी नहीं मिटती है परन्तु वैद्य की दर्शाई हुई औषधी सेवन करने से ही बिमारी मिटेगी। इसलिये अब विलम्ब रहित धर्मोद्धार की चिन्तन शक्ति का विकास कर उसको यथार्थ क्रियात्मक रूप देने का प्रयत्न कर इसमें आपका और अनेक आत्म बन्धुओं का कल्याण है और तब ही आपका "जैन जयति शासनम्" का उद्गार सफल होगा। बस, अविनयादि त्रुटि के लिये बमा याचना करता हुआ विरमता हूं। ॐ शांति ! शांति !!
भवदीय समाज सेवकरिषभदास बी. जैन,
सम्पादक 'महावीर'
वक्तव्य
पोरवाल समाज के अग्र गण्य सज्जनों ने अपनी ज्ञाति का सुधार करने के लिये हाल ही में श्री पौरवाल ज्ञाति सुधारक मण्डल बम्बई में कायम कर जो ठहराव अपनी ज्ञाति सुधार के लिये किये हैं वे निःसंदेह प्रशंसा के पात्र हैं। आशा है कि पोरवाल -ज्ञाति सुधारक मण्डल इन सुधारों को कार्य-रूप में रखने का प्रयत्न करेगा ताकि इससे पोरवाल जाति का तो सुधार होगा ही परन्तु साथ में रहने वाली दसरी जाति भी इसका अनुकरण करने लगेगी। हम एक दम इस विषय में ज्यादा नहीं लिख सकते, ज्यों २ मण्डल प्रगति करता जायेगा त्यों २ हम आपको इसका विशेष परिचय कराते रहेंगे ।
मण्डल की तरफ से जो पत्रिका नं० १ निकली है उसको ज्यों का त्यों इसी तरा के प्रस्ताव अपने २ प्रान्त में अमल में लाने के लिये नीचे देते हैं।
सम्पादक।