SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर देती है और पुनः वह अपने आपको काबू में नहीं ले सके तब तक स्वच्छ दता से वर्तन करती है ऐसे मनुष्य की प्रकृति में कुछ दोष अवश्य होता है । शरीरशास्त्री जोपिरिस ने कहा था कि "सोक्रेटिस के अवयव यह जाहिर करते हैं कि वह मूर्ख, पाशव, कामी और मद्यसेवक था" और सोक्रेटिस के नीचे के शब्दों में से उसके इस पृथक्करण को पुष्टि मिलती थी कि स्वभाव से में इन सर्व पापों से युक्त हूँ और निरन्तर सदाचरणी में रहने से ही सिर्फ वह अंकुश में भाया और उनको जीता। प्रकृति ने प्रत्येक मनुष्य को दिव्य शक्ति दी है जो उसके खराब से खराब भावेश को जीत सकती है उसके प्रबल दुर्गुण को वश कर सकती है यदि सिर्फ इस शक्ति का विकास और उपयोग किया जाय तो कोई भी मनुष्य दुर्गुण का दास नहीं बन सकेगा। ___ सेक्सपियर कहता है कि "यदि तुम्हारे में सद्गुण हो तो सद्गुण का भाडम्बर करो" ऐमर्सन भी इसी आशय का निर्देश करता है कि "जो सद्गुण तुम प्राप्त करना चाहते हो वे सब सद्गुण तुम्हारे में हैं अतएव तुम उनको अपने जीवन में प्राप्त करने का प्रयत्न करो, और जिस तरह के महान् नर का पाठ भजना हो उसके चरित्र में लीन हो जाओ उसके सदाचारी जीवन में निमग्न हो जाओ + "तुम्हारी दुर्बलता चाहे जितनी अधिक हो अथवा तुम उसके लिये बहुत शोक करते हो परन्तु जहाँतक तुम उसके विरोधी विचार को अमल में रखने की सांगोपांग जीवन व्यतीत करने की आदत प्राप्त न करो तब तक मात्र दुर्वलता के विरोधी विचार को भी दृढ़ता और प्राग्रह पूर्वक धारण करो। जब तक अपूर्ण अथवा दोष मिश्रित * दूसरों को धोका देने के उद्देश्य वाले कोई भी भाडम्बर जो नुकसानकारक है उनका विचार मत करो। उदारता के गुणवाला दूसरों के प्रति जैसे बरताव करता है वैसे ही बरतना शुरू करो। अर्यात उदराता से काम लो कि जिसपे वह स्वभावरूप बना रहे इसी अर्थ में हरएक सद्गुण का आडम्बर करने का ऊपर जो बताया गया है ... गुण धारण मत करो परन्तु सम्पूर्ण और उत्तम शक्ति गुण धारण करो।
SR No.541505
Book TitleMahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy