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________________ वृद्धावस्थामें नके शरीर में इतनी कमजोरी थी कि उनका देह तो भेक मुठीभर हाडपीन्जर जैसा दिखता था ऐसे संयोगोंमें किसीको भी आशा नहीं थी कि ऐसे दुर्बल देहमें भी ऐसो अखण्ड श्रुत ज्योति झगमगा रह सकती हैं । भौतिक विज्ञान युगमें रक्त और मांसके फन्डको ही स्मृति, प्रज्ञा और ज्ञानका मूलाधार माना जाता हैं उनके लिये ऐसे महान् विभूतिका धाराप्रवाही प्रवचन ' देह भिन्न स्वतंत्र आत्मतत्त्व' का प्रत्यक्ष प्रदर्शन करा रहा था । अनात्मवादियोंके भ्रान्ति, भ्रमणा और विपर्यासको विलय करनेवाला वह प्रसंग भेक आदर्श और ज्वलंत दृष्टान्त रूप था। आज जो केवल सीनेमा नाटक अथवा प्लेटफोर्म और प्रेसके जड साधनों द्वारा प्रजाके जीवन में पलटा लानेका प्रयत्न चल रहा है उससे हजारो गुना अधिक प्रजा जीवन विकासके लिये पूज्यावर आचार्य भगवंतका ज्ञान और संयमका प्रत्यक्ष दृष्टान्त रूप आदर्श जीवन लाभकारी एवं श्रेयस्कर था । इसलिये ऐसे महापुरुषको केवल भारतके ही महापुरुष मानना इससे अखिल मानवसंसार उदयाशु : मन्युखारी १९६२ : ८१७ के महापुरुष माननेमें कोई अत्युक्ति नजर नहीं आती। उनके स्वर्गवाससे रूषिप्रधान भारतभूमि के आर्य संस्कृतिके खजाने में बड़ी खोट पडी हैं जिसकी पूर्ति होना बहुत ही दुष्कर है । वे तो खिले हुए पुष्पकी भांति अपने पवित्र सम्यग् - दर्शन ज्ञान चारित्र की सुगन्ध इस विश्वके वायु मण्डलमें व्यापक बनाकर अन्तर्धान हो गये अर्थात् जैसे लोग ईक्षुमें रस चूस कर निरस पदार्थको फैंक देते हैं, वैसे ही महापुरुष इस मानवदेह मेंसे अमृतको स्वपर कल्याणके लीये अर्पण करके इस नश्वर देहको छोड़कर स्वर्गधाम पहुँच जाते हैं, परंतु हमे तो समय समय पर उनकी आवश्यकता नको श्रद्धांजली अर्पण कराने में प्रेरणा करती रहती है, तदनुसार मैंने भी श्रद्धाञ्जली रूप यह पुष्पके पांखडियां के समान ये शब्द अर्पण करके अपना कर्त्तव्य बजाता हूँ, बाकी सत्पुरुषोंके गुणगान करनेकी मुझमें कोई योग्यता नहीं है, उनका गुणगान तो वास्तविक गुणीजन ही करने के अधिकारी है- सुज्ञेषु किं बहुना । O શ્રદ્ધાંજલિ વયેાવૃદ્ધ બહુશ્રુત પૂજ્યપાદ આચાર્ય મહારાજ શ્રીમવિજય લબ્ધિસૂરીશ્વરજી મહારાજ જેઓશ્રીએ વાપીમાં ચાતુર્માસ કરી અમારા શ્રી સંઘ ઉપર અથાગઉપકાર કર્યાં છે. અમને ધમ ભાગમાં સ્થિર કર્યા છે. એમના-સરળતા, નિસ્પૃહતા સ્વાધ્યાયજીતતા, નિખાલસતા અને નિરભિમાનતા આદિ ગુણા સ્મરણુ કરતાં હૈયું તેમનાં ચરણામાં ઝુકી પડે છે. આવા એક મહાન ગુરૂદેવને અમારા લાખ લાખ વદન હૉ. મુળ ચંદ સેવક- શુ લા ખ ચંદ વા પી
SR No.539217
Book TitleKalyan 1962 01 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1962
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size9 MB
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