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________________ श्री जिनेश्वर भगवंतने कहे हुए तत्त्व सच ही है और उन्होंने कहे हुए आचारको पालनेवालेः हृदयसे माननेवाले और उन्हीका धर्म सत्य ही है ऐसी जो मान्यता बही सम्यशुदर्शनका लक्षण है । शं'० मल्लिनाथ भगवतका स्त्रीवेद क्यों मिला ! स० पूर्वभवमें मित्रोंके साथ माया कीथी अत: उन्हों का स्त्रीवेद प्राप्त हुआ है। श० कर्म की सत्ता प्रथम है या आत्मा की ? स० कर्म और आत्मा ए दो नो अनादि के है। अनादिकी अपेक्षा छोडकर कौंन पहले और कौन पीछ े ऐसा कह नहि सकते। जैसे कुकडी पहले या ईंडा पहले। वहां कहना होगा कि कुकडी बना इसलिये ईडा पहेले और ईडे बिन कुकडी नहि इसलिये कुकडी पहले ऐसे उनसे पहले वो और उनसे पहले वो । ० मन और आत्माका क्या संबंध है ? ० मन और आत्माका संयोग संबंध है । श० प्राण कितने होते है ? नाम भी लिखे ? स० प्राण दश है. पांच इिन्द्रय मनबल, बचनबल, कायबल, श्वासोश्वास और आयुष्य. ० भावना और विचारमें क्या अन्तर है ? और भक्ति और प्रेममें क्या अंतर है ? ० भावना कार्य है और विचार उसका कारण है और प्रेम कारण है और भक्ति कार्य है। प्रेम भक्त हो नहि सकती । दाना बिच कार्य कारण भावका अन्तर है । ० सत्य किसको कहते है । वह कितने प्रकारका हो सकता है ? स० [जिस वस्तुका जैसा विधान हो वैसाही कथन करना इसका नाम सत्य है । उसकेा देा प्रकार है । नैश्चिकसत्य और दुसरे व्यवहार सत्य । उदयाशु : साह, १८६१: 303 ० व्यवहारनय और निश्वयनय में क्या मन्तर है ? स० व्यवहारनय से आत्मा आठ कर्म सहित सौंसारी है परंतु निश्चयनयसे विचार करने से आत्मा परमशुद्ध सिद्धस्वरूप है। क्योंकि निश्चयनयसे वा पुद्गलका अपनावे तो वो भी जडस्वरूप हो जाय और किसी तरहसे वह शुद्धस्वरुप हो सकता नही । ( प्रश्नमार:- गुलामय है, मेस. शाह लूक ३२छ ). डेवनी डोटीमा पड़े भरौ ! શ॰ શ્રાવકના આયુષ્યના બંધ વૈમાનિક भने ते वसते आयुष्य अंध पडे नियमा ते સ॰ જો શ્રાવકાચારમાં શ્રાવક કાયમ હોય नेमानिष्ठ देवमां २४ श छे. શું આઠકમાં પ્રકૃતિ પૈકી અંતરાય કના ક્ષય કરવા વાસ્તે સચોટ ઉપાય શું ? સ॰ અંતરાય કર્માંના ક્ષય. માટે યથાખ્યાત ચારિત્રની આરાધના છે સિવાય ઘાતીકમના ક્ષય નથી અને અંતરાયકમાં ઘાતીકમાં છે. શ॰ આપણે બહુલ સંસારી છીએ કે પરિમિત્ત સંસારી છીએ તેની પ્રતીતિ શી ? સ॰ જે ભવભીરૂ હાય, જેને પાપના ડર હાય પછી તે છેડી શકતા ન હાય પણ છેડનાની તીવ્ર ભાવના રાખતા હોય તેને અલ્પ સંસારી કહી શકાય જ્યારે ઉપરાંતનું કંઇ જ भित संसारी न अडी शाय ન હોય અને ભાભિનદી હોય તેને અપ-પરિ શ આયુષ્યના બંધ પડી ગયા છે તેની પ્રતીતિ જીવને કઇ રીતે થાય? मे સ॰ આયુષ્યના બંધ પડી ગયા છે કે નિહુ ज्ञान विशिष्ट ज्ञानीना उथन सिवाय लशी શકાય નહિ અથવા સ્વયં વિશિષ્ટજ્ઞાની હોય ત भी शडे ते सिवाय वने अतीति थर्ध શકે નહિ.
SR No.539211
Book TitleKalyan 1961 07 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1961
Total Pages58
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size9 MB
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