________________
: ३८ : भेड़ विशारा :
आखर श्री यति निराश बनी
बेसी गया । "
" सांप्रदायिक मनोवृत्ति के परिभाषक होने पर भी यह महत्त्व का उल्लेख है आनंदघन पराजित हुए व पत्थर वरसाये यह उल्लेख सांप्रदायिक महत्त्व का हो सकता है ।
मैंने मूल ग्रंथ के उद्धरण प्राप्त करने के लिए प्रयाग विश्व विद्यालय के अध्यापक माता बदल असवाल को पत्र दिया तो उन्हों ने लालदास कृत बीतक और वृतांत मुक्तावली के निम्नोक्त पद भेजे है:
अबसीदपुर सें ॥
मेडते पोहोंचे धाये ॥ लाभानंद जती सों ॥
चरचा करी बनाए ॥ ४२ ॥ इस दिन चरचा में भभे ॥
ठौर ठौर हुआ जब बंध ॥ तब कही महा मत मेरा गयेा ॥
मेरे मारग को परबंध ॥ ४३ ॥ मारो दाव के पहाड़ में ॥
इनको ठारों उलटाए ॥
सब दे तो मंत्र से ॥
भांत भांत किए उपाए ॥। ४४ ।।
घर पर वत उठयो नहीं ॥
तब हार के बैठा ठौर ॥ पंच वासना सब देव जहां बड़े ||
तहां मंत्र चले क्यों और ॥ ४५ ॥
મન એટલે વિચારાનું સંગ્રહસ્થાન. નિદ્રા એટલે મૃત્યુના એક અખતરો. રાગ એટલે અગ્નિના જલતા અ`ગારા. વિજ્ઞાન એટલે વેદનાના विश्वास. તપ એટલે કમ તેાડવાનુ પ્રળ સાધન. પૌષધ એટલે ચારિત્રની वानगी.
[छत्रशाल के समसामयिक शिल्प व्रजभूषण की वृत्तान्त मुक्तावली यह घटना इस प्रकार उल्लिखित है ] यद्यपि इन दोनो उल्लेख में / आनन्दघनजी के स्वर्गवास की सूचना तो नहीं है जैसी कि प्रभुदासभाइने प्रणामी संप्रदायने दी थी ।
चले सीदपुर ते धनी ॥ आए. मारू
सहर मेडता के विणे ॥
શઠ્ઠા ની ન્યા ખ્યા
देश ॥
राजा राम सु देश ॥ ३३ ॥ लामानन्द यति रहे ||
सोर ॥ ३४ ॥
तिनस चरचा जोर ॥ भई अधिक तेहि ठौर में ॥ परयो सहर में आनन्दघनजी के कुछ अप्रकाशित पद मुजे मिले हैं तथा पंच समिति की ढ़ालो "विविध - पुष्पक - वाटिका में प्रकाशित हो चुकी है ।
આંખ એટલે દષ્ટિએને सभु. આરીસા એટલે રૂપ જોવાની દિવાલ. લગ્ન એટલે સંસારનું પરિભદ્મણુ. ધમ એટલે સગતિએ જવાની ચાવી. ઉપાશ્રય એટલે શાંતિનું એક નિકેતન. ચાંલ્લા એટલે ભગવાનની આજ્ઞાનું ચિહ્ન.