SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : स्याए : भार्थ-अप्रील : १८५८ : 16: करेल अगीयारे अंग सांभलीने शीखी गयो" प्रश्न:- भा. म. २॥ मधेश] और इस चरित्र में श्री हरिभद्रसूरिजी के चरि- २० मा त समा छ त्र में लिखा है की “एटले साध्वीए जणाव्यु भ १. अन डाय तो मनुष्य ४ श है के जिनागमोनो अभ्यास करवानी अमने गुरुनी ना ? अनुमति छे पण तेनु विवेचन करवानी आज्ञा स० श्री मष्टा५४७ पर्वत समां विधनथी" जबकी श्रीमद् यशोविजयजी उपाध्याय भान छ भने ते हिमालयना मे विनामों विरचित वीर स्तुतिरुप हुंडीका स्तवन में बतलाया ગાઢ બરફના જથાથી છવાયેલ છે. અને ત્યાં દેવ શક્તિ અથવા સ્વલબ્ધિ મારફત મનુષ્ય हैं की "योग वहीने रे साधु श्रुत भणे, तथा ४४ श छ. .. मुनिराज पण अमुक दीक्षा पर्याय वाला [પ્રશ્નકાર – એડનવાલા હસમુખ એલ. थाय त्यारे तेमने अमुक ज सूत्र भणवानो अधिकार छे" तो क्या साध्वीजी को ग्यारह अंगका अभा२. २०४] योगवहन कर के ११ अंग पढनेका अधिकार શ૦ પૂર્વભવ કઈ રીતે યાદ આવે? है या नहीं? સત્ર પૂર્વભવના ઉદ્ધ ક કેઈ નિમિત્તદ્વારા स० जब २ साध्वीओं जिनागमो या अंगो पढी मने भतिज्ञानना सुंदर क्षयोपशम द्वारा पूल पढती है, या पढ़ेंगी वे सब योगोद्वहन या यावीश छे. पूर्वक ही। શં, શાન્ત ચિત્ત રાખવાથી તથા મનની ___ शं० श्रावकों को ४५ आगमो में से किस यता २५वाथी मामलास थाय है? २ आगम को पढने का अधिकार है ? आगमों સ. શાન્તચિત્ત અને મનની એકાગ્રતાથી की टीका या हिन्दी अनुवाद का पढनेका शास्त्रा- मामि४ मान मावे छ, मत२ न्याति - नुसार आज्ञा है या नहीं ?। | મગતી દેખાય પણ તે આત્મા છે એમ માનવું स० श्रावकों को आवश्यक सूत्र, विशेषा સનહિ. કારણ કે આત્મા અરૂપી છે, અનંત " કેવલજ્ઞાન સિવાય દેખી શકાય નહિ. वश्यक सूत्र और संयमामि मुख हो तो दशवैकालिक सूत्रका चार अध्ययन पढनेका अधिकार है। सुविहित गीतार्थ गुरुको उपरोक्त सूत्रो का રેડીયમ તથા પ્લાસ્ટીકની अनुवाद बतला कर एवं अनुमति मिले बाद માળા, સાપડા, ઠવણી, બટવા વગેરે श्रावकों पढ़े इसमें हरकत नही है...... ખાસ પ્રભાવના માટે शं० क्या सामान्य साधु महाराज श्री उप- स्टरीजनो सेट मा स्थापनायाय', धानतप करा सकते है?. સાપડી, માળા, બોકસમાં તૈયાર મળશે, મૂલ્ય स० जिसने श्री महानिशीथ सूत्रका योगो- ३. 21. भाटे भो २२ सपा:द्वहन किया हो वैसे सामान्य साधु श्री उपधान सुनदाट आउटस जप करा सकते है. ५६-६७ भीरा स्ट्रीट- ४-३.
SR No.539183
Book TitleKalyan 1959 03 04 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1959
Total Pages130
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy