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________________ या :: भार्थ-मेशात १८५८ : २८ : ॥ ढाल तीशरी ॥ सम्राट चन्द्रगुप्तने उस मूर्तिकी प्रतिष्ठा चौदह, ( चाल-शत्रुजय गयो पाप छूटिये ) । पूर्वधर श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहुसे करवाई थी, उनका समय कवीश्वरने वीर निर्माणके पश्चात् मुलनायक बीनो वली, १७० वर्षका बतलाया है और उस समय यह सकल सुकोमल देहो जी ॥ दोनों महापरुष विद्यमान भी थे। इतना ही प्रतिमा श्वेत सोना तणी, क्यों पर इनके पूर्व भी जैनोमैं मूर्तियोंके अस्ति त्वका पता मिल सकता है जैसे कि :- मोटो अचरज येहो जी ॥१॥ अरमन पास जुहारिये, . ॥ ढाल चौथी । ___अरजुनपुरी शृंगारो जी ॥ (तर्ज-वीर सुणो मोरी विनति ) तीर्थंकर तेवीसमो, मारो मन तीर्थ मोहियो, मुक्ति तणो दातारो जी ॥२॥ मइ भेट्या हो पद्मप्रभु पास ॥ चंद्रगुप्त राजा हुओ, मुलनायक बहु अति भला, प्रणमतां हो परे मननी आस ॥१॥ चाणक्य दिरायो राजो जी ॥ संघ आवे ठाम ठामना, तिण यह बिंब भरावियो, वलि आवे हो. यहां वर्ण अढार ॥ सार्या आतम काजो जी ॥३॥ यात्रा करे जिनवरतणी, १-दूसरे मूलनायक श्री पार्श्वनाथजीकी तिणे प्रगटयो हो ये तीर्थ सार ॥२॥ प्रतिमा सफेद सुवर्णमय देख कविवर बडा भारी भाश्चर्य प्रगट करते है। शायद रत्न, हीरा, जूनो बिंब तीर्थ नवो, स्फटिक, माणिक्य, नीलम, पन्ना आदिकी जंगी प्रगट्यो हो मारवाड मझार ॥ मूर्तियां तो आपके समयमें विद्यमान थी परन्तु गांगांणी अरजुनपुरी, सफेद सोनाकी मूर्ति गांगांणीमें ही देख कर नाम जाणे हो सगलो संसार ॥३॥ आपने आश्चर्य माना हो । सम्राट् चन्द्रगुप्तने इस प्रतिमाको बनवा कर वास्तवमें मूर्ति के प्रति-- श्री पद्मप्रभ ने पासनी, अपनी अट श्रद्धा और भक्तिका परिचय दिया ए बेहु मुर्ति हो सकलाप ॥ है । कौटिल्यके अर्थशास्त्रमें मेक उल्लेख मिलता सुपना दिखावे समरतां, है कि सम्राट् चन्द्रगुप्तने अपने शासनमें अक तसु वाध्यो हो यश: तेज प्रताप ॥४॥ यह भी नियम बनाया था कि "अक्रोशादेव चैत्याना मुत्तमं दंडमर्हति" महावीर भोहरा तणी, . अर्थात्-जो कोई यदि चैत्य एवं देवस्थानके .ए प्रगटी हो मुर्ति अति सार ॥ विषयमें यद्वा-तद्वा अपशब्द कहेगा अथवा इनकी निनप्रतिमा जिन सारखी, भाशातना करेगा बह महान् दंडका भागी समझा कोई शङ्का हो मत करनो गार ॥५॥ जायगा, जैसा जिनशासनका सच्चा भक्त यदि सफेद सोनेकी मूर्ति बनावे तो इसमें आश्चर्य संवत् सोला बासटी सुमइ, ही क्या है। यात्रा किधी हो मइ महा मझार ॥
SR No.539171
Book TitleKalyan 1958 03 04 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1958
Total Pages110
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size16 MB
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