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________________ जैनधर्म और विज्ञान श्री अभृतलाल मोदी, एम. ए, बी. ए., विशारद (हेडमास्तर, जैन गुरुकुल, पालीताना )... जैन धर्म संसार में एक अद्वितीय धर्म है ! प्रकार कर सकता है, एवं जीवकी विभिन्न जैन धर्म की फिलासफी-इतनी सुंदर व इतनी अवस्थाओमें तथा उन्नतिके ममें वह किस प्रकार गहरी है कि कोई उसका मुकाबला नहीं कर चारोहण कर सकता है, उ अवस्था को पहुसकता! कुछ एक धर्मों में तो लगभग दर्शन कुछ चने के क्या व किस प्रकार सत्न कर सकता है ही नहीं! धर्म के मोटे मोटे सिद्धांत प्राय: है आदिका विशद वर्णन है, इससे प्रत्येक जीव सभी धर्मों में मिलते है ! सभी धर्म अहिंसा, अपनी उन्नति करके मुक्त अवस्था को पहुंचने सत्य, अस्तेय आदिका उपदेश करते हैं ! लेकिन का प्रयत्न कर सकता है! . उन धर्मो में इन सब को किस प्रकार पालना,. हिंदू धर्म में भी कुछ दर्शन है पर उसमें इनका पालन करने में किन किन बातों का इन बाते का इतना वर्णन है ही नहीं, फिर विचार जरुरी है, इस बात का पूर्ण विचार उनके सूक्ष्म विचारों और गहनता, सुदरता तथा जैन धर्म में जिस प्रकार है, उसके और उसके विशदता की तो बात ही क्या? कई लोग तो पीछे जो दर्शन है, इस बात को ले कर जैन यहां तक मानते है कि हिंदू धर्म का उपनिषदधर्म एक अद्वितीय धर्म बन जाता है! काल तो जैन धर्मका तेवीसमा तीर्थंकर भगवान जैन धर्म त्यागमय धर्म है! ब्राह्मण धर्म पार्श्वनाथ के बाळका है! अधिकतर भागप्रधान धर्म है ! मुसलमानी अब हम जैन लोगों का कर्तव्य है कि इसी धर्म तथा ईसाई धर्म में केवल धर्म के मुख्य धर्म को संसार के सामने पूर्ण रुपसे फैला दे! सिद्धांतों का ही वानि मिलता है! इस सबका संसारमें आज लोकशाही का जमाना है ! प्रचार एक कारण जो बतलाया जाता है वह है:-जिस का जमाना है ! प्रचार से ही लोग हरओक चीज समाजमें जिस धर्मकी उत्पत्ति हुई, उस प्रथम के गुण दोषो को जान सकते है ! अतः हमे समाजकी जो स्थिति होगी, उसी के अनुसार अपने धर्म के गुणोंका पूर्ण रुपसे प्रचार करना धर्मका विकसित रुप मिलता है ! इसी कारण चाहिये ! ऐसा प्रचार करनेसे ही हम लोगों का मुसलमानी धर्म और ईसाई धर्म-करीब करीब यह मनवा सकते हैं कि जैन धर्म अति उत्तम जंगली अवस्था के लोगोंके बीच प्रचलित है और उसके सिद्धांत सबके मानने लायक है हुए, बहुत ही कम विकसित है! इधर जैन धर्म और वह धर्म सबके पालन करने योग्य है तथा तथा हिंदु धर्म और बौद्ध धर्म भारतके सभ्य सब उसे पाल सकते है, हर एक जैन का कर्तव्य समाज में प्रचलित हुए अतः अधिक विकसित है कि वह शासनकी शोभाको बढावे, और सासनकी है ! लेकिन उन सबमें जैन धर्म का दर्शन अति शोभा तभी बढ़ सकती है जब हम म. गहन, सूक्ष्म तथा विशाल है! का अन्यों में प्रचार करे ! जीव जीव की गति प्रकार इस प्रचार के लिये हमे इस धर्म का उत्पत्तिस्थान आदिका विशद वर्णन है, जिससे उन खूब पठन पाठन करना चाहिये ! जैन मतावसबकी हिंसासे बचा जा सके ! उसमें धर्म लम्बियों को जैन धर्म का पूर्ण बोध कराया जाय फिलासफीका विशद वर्णन है जिससे धर्म को फिर बादमें अन्य धर्मावलम्बियों को! तभी तो पहचानने में, कर्म को हटाने में, तथा कर्म को हमारे जैन धर्म की शोभा बढ सकेगी, तभी तो किस प्रकार कमसे कम बांधा जाय यह जानने में इसका अच्छा विकास होगा! मदद मिलती है ! जीव अपनी उन्नति किस जैन धर्म की किसी भी बातको विज्ञान
SR No.539155
Book TitleKalyan 1956 11 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1956
Total Pages58
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size13 MB
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