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________________ १४ वर्ष ४०, कि०३ अनेकान्त पाठ को दस शक्त्यश वाला होना आवश्यक है। भाव यह समर्थन किया है। सूर्य का उष्ण प्रकाश आतप और है कि बन्ध में सर्वत्र दो शक्त्यमों का अन्तर होना चाहिए, चन्द्रमा का ठण्डा प्रकाश उदयोत है। में इसमें कम न इससे ज्यादा। किन्तु एक गुण "शक्त्यंश" इस प्रकार कुन्द कुन्द साहित्य में पुद्गल तथा परपाले परमाणु का बन्ध नहीं होता। माण के सन्दर्भ में विस्तृत विवेचना उपलब्ध होती है कुन्द कुन्द ने लिखा है परमाणु की उत्कृष्ट गति एक समय में चौदह राज़ बताई जिंदा व लुक्खा वा अणुपरिणामा समा व विसमा वा। गयी है आधनिक विज्ञान ने भी इसका समर्थन किया है समदो दुराधिगा जदि बझंति हि आदि परिहीणा ।। आवश्यकता है ऐसे अन्वेषको की जो आधनिक और प्राप्य विज्ञान का ममालोचनात्मक अध्ययन कर सामञ्जस्य बैठा इसी प्रकार सूक्ष्मत्व भी पुदगल को पर्याय है । अन्त्य सकें। परमाणु के सम्बन्ध में डा० राधाकृष्णन के वक्तव्य सक्षमत्व परमाणुओ तथा अपेक्षिा सूक्ष्मत्व बेल, आवला के साथ हम इस नि : ति में है। अन्त्य स्थौन्य लोकरूप महास्कन्ध और अगओ के साथ श्रेणी विभाजन से निर्मित वर्गो की बापेक्षिक स्थौल्य वेर, आवला आदि में होता है। मेध नानाविधि आकृतिया होती हैं। कहा गया है कि अणु के आदि की आकृति संस्थान है। पुदगल पिण्ड का भंग होना अन्दर ऐसी गति का विकास भी सम्भव है, जो अत्यन्त भेद कहलाता है। वेगवान् हो, यहा तक कि एक क्षण के अन्दर समस्त नेत्रोको रोकने वाला अन्धकार और शरीर आदि के विश्व की एक छोर से दूसरे छोर तक परिक्रमा कर निमित्त से प्रकाश आदि का रुकना छाया है । छाया को माये । भी अन्य दर्शनो ने पुदगल नही माना है किन्तु आधुनिक अध्यक्ष संस्कृत विभाग, विज्ञान से कैमरे, फिल्म आदि मे छाया को पकडकर तथा श्री कुन्द कुन्द जैन महाविद्यालय, एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजकर जैन दर्शन का ही खतौली २५१२०१ "उ० प्र०" सन्दर्भ१. कुन्द कुन्द, पंचास्तिकाय' गाथा १० १४. 'पंचास्तिकाय' गाथा ८१ २. 'नियमसार' गाथा 9 १५. वही गाथा ८० ३. 'तर्क संग्रह' पृष्ठ ६ मोतीलाल बनारसीदास १६. 'नियमसार' गाथा २८ संस्करण १७ वही गाथा २५ ४. 'पचास्तिकाय' गाथ ४ १८. 'तत्वा मूत्र' ५/२० ५ माधवाचार्य, 'सर्वदर्शन संग्रह' पृष्ठ १५३ चौरवम्वा विद्याभवन संस्करण १९ 'शब्द गुणकमाकाशम', 'तर्कस ग्रह पृष्ठ ४३ २० 'तत्वार्थ सूत्र' वर्णी ग्रन्थमाना प्रकाशन, पृष्ठ २३० ६ 'प्रवचनसार' गाथा १३२, जयपुर सम्करण २१ 'पंचास्तिकाय' गाथा ७६ की व्याख्या राजचद्र ७. नियमसार' गाथा २० शास्त्रमाला ८. 'पचास्तिकाय' गाथा ७४ ६. वही गाया ७५ २२ प्रवचनसार २/६६ १०. नियममार' गाथा २१-२४ २३ प्रो० जी० आर० जैन ने स्निग्धत्व को वैज्ञानिक ११. वही गाथा २५ परिभाषा मे निगेटिव और पॉजिटिव माना है। १२. वही गाथा २६ "दे० 'तीर्थकर महावीर स्मृति ग्रन्थ', जीवाजी १३. 'जैन दर्शन का तात्विक पक्ष परमाणुवाद" जैन विश्वविद्यालय ग्वालियर प्रकाशन पृष्ठ २७५दर्शन और संस्कृति नामक पुस्तक में संकलित २७६" निबन्ध इन्दौर विश्वविद्यालय प्रकाशन अफ्ट० २४ 'भारतीय दर्शन'प्रथम भाग राजपाल एण्ड सन्स, मा दिल्ली, १९७३, पृष्ठ २९२
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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