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________________ है, वे कुशाण काल की है और उनमे यदि जिन भगवान खड़गासन श्वेताम्बरी प्रतिमा पाचवी शताब्दी के पूर्व की नही मिलती मुद्रा में है तो निर्वस्त्र (नग्न) दिगम्बर हैं और यदि पद्मासन है तो है। एतदर्थ विश्व मान्य सदर्भ ग्रन्थो द्वारा भी दिगम्बरो की प्राचीनता उनकी निर्मिति इस प्रकार की है कि न तो उनके वस्त्र और न असंदिग्ध है। ही गुप्ताग दिखाई देते है । यद्यपि श्वेताम्बर-दिगम्बर भेद न्यायालयों के अनसार भी दिगम्बर ही प्राचीन कुशाणकाल में ही प्रारम्भ हो गया था तथापि ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय तक दिगम्बर व श्वेताम्बर (दोनो समदाय) पारसनाथ पर्वत का महत्त्व तीर्थकरो की दिगम्बर (नग्न) प्रतिमाओ की ही पूजा करते थे। 16000 एकड़ में फैला श्री सम्मेदशिखर (पारसनाथ पर्वत) गुजरात के अकोटा स्थान से ऋषभनाथ की अवर भाग पर जैनियो का अनादि काल से पूज्य तीर्थ है । इस पर्वत से चौबीस वस्त्र सहित जो खड्गासन प्रतिमा प्राप्त हुई है वह ईसा की पाचवी मे से वीस तीर्थकर और असख्यात मूनि दिगम्बर अवस्था मे मोक्ष शताब्दी के अतिम काल की मानी गयी है जो कि बलभी मे हए पधारे है । देवो ने जिन स्थानो को चिन्हित कर दिया था वही पर अतिम अधिवेशन (काफ्रेस) का समय भी है । इसमे पता चलता टोके (छोटे मदिर) और तीर्थकरो के चरणचिन्ह स्थापित है। यही है कि बलभी के इस अंतिम अधिवेशन (कांफ्रेस) से ही श्वेताम्बर कारण है कि यह पर्वत दिगम्बरो की असीम श्रद्धा का केन्द्र है मत का प्रादुर्भाव हुआ। जैसे हिन्दुओ के लिए काशी। चरणचिन्ह दिगम्बर मान्यता के अनुसार "Images of the Turthankaras found at Mathur and datable to the Kusana period either depict the Jina in श्वेताम्बरी का यह आरोप एकदम निराधार है कि दिगम्बर a Standing attitude and unclothed or it cated in the जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ में पडित बलभद्र जी ने crossedlegged posture, dre sculputured in such a सभी टोकी को श्वेताम्बरो द्वारा स्थापित किया गया लिखा है । way that neither garments nor genitals are visible. Though the Swetambara-Digambara differences यह असत्य है । उन्होंने कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है बल्कि प्राचीन had already originated in the Kusana age, it would चरणो पर जीर्णोद्धार के नाम पर ना आलेख खुदवा देने की उन्होने appear that at this time both sects worshipped nude images of Tirthankaras. The carliest known image घोर भत्सेना की है। of Jina with a lower garment, the standing सभी 20 टोको में दिगम्बर आम्नाय (मान्यता) के चरण चिन्ह Rsabhanatha discovered at Ahold in Gujarat state. has been dated to the latter part of the 5th centurty म्थापत ह । जव श्वताम्बरा न प्राचान दिगम्बर चर स्थापित है । जव श्वेताम्बरो ने प्राचीन दिगम्वर चरणचिन्हो का AD, the age of the last council at Valabhi This हटाकर नये चरणचिन्ह स्थापित करने का प्रयास किया तब suggests that the Valabht council marked the Sinal separation of the two sects." दिगम्बरो ने न्यायालय से इस कुकृत्य को रुकवाने का आवेदन किया । विद्वान न्यायाधीश हजारीबाग ने निर्णय दिया कि बीसो प्राचीन प्रतिमाएं दिगम्बर हैं टोंको के चरणचिन्ह दिगम्बर आम्नाय की मान्यता के अनुसार मथुरा के अतिरिक्त जो भी प्राचीन प्रतिमाए उपलब्ध है वे है। वाद सख्या 288/1912 दिनाक 31 अक्टूबर 1916 सभी दिगम्बर है । उड़ीसा मे उदयगिरी के गुफा मदिर ईसा पूर्व "The shape of the Charans in the 20 Tonks is in दूसरी शताब्दी मे सम्राट खारबेल के समय खुदाई मे निकले confirmity with the Digambar Tenets" थ । शिखर सम्मेद पर, जहा से बीस तीर्थकर मोक्ष गए है उन चरण इसी स्थान पर क्यों ? सभी के चरण चिन्ह दिगम्बरी आम्नाय के अनुसार है। राजगीर न्यायाधीश ने जव श्वेताम्बरो से पूछा कि चरण और टोक के मदिरो मे 2000 वर्ष से अधिक प्राचीन दिगम्बर प्रतिमाए इन्हीं स्थानो पर क्यो बनाये गए है ? श्वेताम्बरो का तर्क था कि है । इसी प्रकार देश के कई सग्रहालयो मे ईसा पूर्व की सभी पूरा पर्वत उनका था अत जहां कहीं भी किसी दानी ने चाहा वहां प्रतिमाए दिगम्बर है। श्रवणबेलगोला मे भगवान् बाहुबली की 18 वरण और टोके बनवा दी, क्योकि वह उनकी निजी सम्पत्ति मीटर ऊची खड्गासन प्रतिमा का निर्माणकाल दसवी शताब्दी का है। दिगम्बर जैन तो यहा सैलानी के रूप मे आते थे मानो वह आरभिक काल है। स्थान धार्मिक और पवित्र न होकर सैर-सपाटे की जगह हो । श्वेताम्बरों के मंदिर "They (Swetambars say that the shrines have been built by them without regard to any particular आबू पर्वत पर देलवाड़ा के मदिर ग्यारहवी शताब्दी मे बने place and claim them as 'private Chaples' where they say Digambar came as sightseers with no better है । रणकपुर का मदिर पद्रहवी शताब्दी में निर्मित हुआ है। rights than visitors of stone benge in England"
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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