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________________ अनेकान्त/३८ वस्तुऐ पहुंच गई वह भी निरर्थक स्वास्थ्य घातक भोग विलास से भरपूर अभिमान प्रदाता भाईचारे से दूर । हमारी भोजन सामग्री, फल-फूल , सब्जी, मिर्चमसाले व औषधियाँ सब निर्यात हो रहे है बदले मे भोगो की सामग्री आ रही है, हम मॅहगाई की मार से मर रहे है, सूखे उपवनो मे सगीत के फव्वारे लगाने की तैयारी है। अरब-खरब की सपदा, उदय अस्त लौ राज धरम बिना सब विफल है, ज्यो पत्थर भरो जहाज"। भारतवासी भूखे-नगे हो गए बदले मे भोगविलास की सामग्री, विद्यार्थीयो को बरबाद करने वाले टेलिविजन, व चारित्र घातक चित्रपट प्राप्त हुए। नशाबदी के स्थान पर शराब के ठेके सरकारी आय के साधन बन गए । गाँधी जी ने कहा था शराब की आय से मेरे देश के विद्यार्थी पढे तो मै उन्हे अनपढ रखना पसन्द करूँगा शराबी नहीं बनाऊँगा विदेशी मुद्रा की ललक इतनी बढी की चमडे व मॉस का व्यापार भी निर्यात् हेतु प्रारम्भ हो गया। अलकबीर देबनार जैसे यात्रिक कत्लखाने खोले गए जहाँ पशुओ को भूखा-प्यासा, तडफा-तडफा कर मारा जाता है हमारी पूज्य गौ-मा का वश हाहाकार, चीत्कार करता हे और हम, हमारे राष्ट्रनायक विदेशी मुद्रा की ललक मे वातानुकूलित कमरो मे आराम करते है। “मत सता गरीब को वाकी मोटी हाय मुए चाम की धौकनी लोह भसम हो जाए। कही ऐसा ना हो कि हमे भी इसी प्रकार तडप-तडप कर प्राण देने पड जाऐ। जब प्रभ के सामने उपस्थित होगे क्या उत्तर होगा हमारे पास अपने ककृत्यो का। प्रकृति का नियम है कि मेहनत करो भोजन पाओ, बिना मेहनत खाओगे तो मधुमेह, हार्टफेल जेसी व्याधियो के शिकार होकर पृथ्वी से सिधारोगे। आज हर भारतीय परेशान है न भोजन न आवास न प्रेम न भाईचारा । सब अच्छी वस्तुऐ विदेश जा रही है । बरबादी के कारण, भोग-विलास की वस्तुएं यहाँ आ रही है। परिणाम सामने है न स्वास्थ्यवर्धक भोजन न प्राकृतिक प्राणदाता जल, न जीवनरक्षक शुद्ध वायु प्राप्त है। सब तरफ चीत्कार, हाहाकार, आतकवाद भुखमरी एक दूसरे से ईर्ष्या, ऊँच-नीच की दीवारे आपस की फूट व कलह । __ प्रभु हमे सन्मति दे हम भारत का गौरव प्रकृति की अनुपम देन को पहचाने बिना भेदभाव के, बिना जाति-पांति के झगडो से समस्त बन्धु भारत मॉ की गोद मे प्रकृति की अनुपम देन का लाभ ले। विद्यार्थीयो को सुसस्कृत विद्यादान मिले, भूखो को आहार प्राप्त हो, रोगियो की औषधियो से सेवा हो, हम अपने खर्चों को सीमित कर भगवान महावीर के परिग्रह-परिमाण व्रत का आचरण करे। मधुमक्खियो की तरह सग्रह की प्रवृति अपनाकर विपदाऐ मोल न ले। -प्रेमचन्द जैन भगवान महावीर अहिंसा केन्द्र अहिसा स्थल महरौली नई दिल्ली
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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