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अनेकान्त/३३ ५ नय विश्व चक्षुराशाधरो विजयता कलिकालिदास ।।
इत्युदससेनमुनिना कवि सुहृदा योभिनन्दित प्रीत्या। (क) सागार धर्मामृत प्रशस्ति, श्लोक ३ एवं ४ (ख) अनागार धर्मामृत , श्लोक ३ एव ४ डा मानमल जैन (सेठिया) मुख्य सम्पादक बघेरवाल सन्देश वर्ष २८ अक ५. मई १६६३. प्रस्तावना. पृ (क) अनागार धर्मामृत, अध्याय ८. श्लोक ६ श्री मानास्ति सपादलक्ष विषय शाकभरी भूषणस्तत्र श्री रतिधाम मण्डलकर नामास्ति दुर्ग महत् ।
जिनयज्ञ कल्प (जैनग्रन्थ उद्धारक कार्यालय, वि स १६६८. सन् १६१६) ६ श्री रत्यामुदमादि तत्र विमल व्याघेवालान्वयाक्षणता जिनेन्द्र समय श्रद्धालु आशाधर ।।
सागार धर्मामृत भव्यकुमुदचन्द्रिका टीका, प्रशस्ति, १ १० व्याघेरवाल वरवश सरोज हस काव्यामृतो घरसपान सुप्रमात्र ।
सल्लक्षणस्य तनयो ।।
अनागार धर्मामृत, भव्यकुमुदचन्द्रिका टीका, प्रशस्ति, ३ ११ सरस्वत्या मिवात्मानं सरस्वत्यामजीजनत्।
य पुत्र छाहड गुण्य रञ्जितार्जुन भूपतिम् ।।
सागार धर्म, भव्यकुमुद चन्द्रिका टीका, प्रशस्ति १२ बघेरवाल सन्देश, वर्ष २७ अक ५, मई १६६३ पृ १६ १३ वही, अभीक्षण ज्ञानोपयोगी प आशाधर जी, पृ ५६ । १४ म्लेच्छदेशेन सपादलक्षविषये व्याप्ते सुवृत क्षति
त्रासाद्विन्ध्यनरेन्द्रदो परिमल स्फूर्ज त्रिवर्गाजसि । प्रापा मालवमण्डले बहुपरिवार पुरीभावसन् यो धारामपठज्जिन प्रमिति वाकशास्त्रे महावीरात सा ध टी प्र ५ द्रष्टव्य जैन साहित्य एव इतिहास (हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर बम्बई १६५६) श्री मदर्जुन भूपाल राज्ये श्रावक सकुले। जिन धर्मोदयार्थ यो मलकच्छपुरे वसत् ।। अनागार धर्मामृत, भव्य चन्द्रिका टीका, प्रशस्ति, श्लोक यो द्रग्व्याकरणब्धि पारमनयच्छश्रूय माणान्नकान् सत्ती परमास्त्रमाप्य न यत प्रत्यर्थिन के ऽक्षिपन् । चारू के ऽस्खलित न येन जिन वाग्दीप पथि ग्रहिता पीत्वा काव्य सुधा यतश्च रसिकेष्वापु प्रतिष्ठान के।। सागार धर्म, प्रशस्ति ६१और भी देखे अनगार धर्मामृत टीका प्रशस्ति ६१
द्रष्टव्य प्रशस्ति श्लोक ६का भाध्य । १६ प नाथूराम नेन साहित्य एव इतिहास २० के भट्टारकदेव विनय चन्द्रादय जिनवाग अर्हतपरबनम मोक्षमार्गे स्वीकारिता प्रशस्ति
६ भाष्य
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