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________________ अनेकान्त/३० (स) अनागार धर्मामृत टीका में उल्लिखित ग्रन्थ वि. सं. १३०० में सम्पन्न इस अनागार टीका मे उपर्युक्त ग्रन्थों के अलावा वि. सं. १२६६ में रचित ग्रन्थों का उल्लेख हुआ जो निम्नांकित हैं। (१६) राजीमती विप्रलम्भ : यह ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं हैं। आशाधर ने लिखा है कि यह एक खण्डकाव्य है, जिसमें नेमिनाथ और राजुल के वैराग्य का वर्णन हआ है। इसपर कवि ने स्वोपज्ञ टीका भी लिखी थी ५२। इसकी रचना वि.सं. १२६६-१३०० के बीच में कभी हई थी क्योंकि इसका उल्लेख इससे पूर्व में रचित प्रशस्ति मे नहीं हुआ हैं। (२०) अध्यात्म रहस्य : पं. आशाधर ने अपने पिता के आदेश से इस प्रशस्त और गम्भीर ग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ योग का अभ्यास प्रारम्भ करने वालों के लिए बहुत प्रिय था ५३। इसका दूसरा नाम योगोधीपन-शास्त्र भी मिलता हैं ५४। यह ग्रन्थ वीर सेवा मदिर दिल्ली से वि.सं. २०१४ सन् १६५७ मे जुगल किसोर मुख्तार युगवीर का हिन्दी अनुवाद और व्याख्या सहित प्रकाशित हो चुका हैं। सि.प.केलाशचन्द्र शास्त्री ने भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली से सन् १६७७ मे प्रकाशित धर्मामृत (अनागार) की प्रस्तावना ५५ में अप्राप्त लिखा है इसी प्रकार बघेरवाल सन्देश ५६ की प्रस्तावना में डा. मानवल जैन ने भी इस ग्रन्थ को अप्राप्त लिखा है जो सत्य नही है। ___इस ग्रन्थ में ७२ पद्य है। इसका विषय अध्यात्म (योग) से सम्बन्धित हैं आत्मा-परमात्मा के सम्बन्ध का मार्मिक विवेचन है। (२१) अनागार धर्मामृत टीका : इस ग्रन्थ की रचना वि.स. १३०० मे नलकच्छ के नेमि जिनालय मे देवपाल राजा के पुत्र जैतुगिदेव अवन्ति (मालवा) के राजा के समय मे हुई थी ५७ । अनुष्टुपछन्द में रचित ग्रन्थ कार्तिक सुदि पंचमी, सोमवार को पूरा हुआ था। इस ग्रन्थ का परिमाण १२२०० श्लोक के बराबर हैं ५८। यतिधर्म को प्रकाशित करने वाली और मुनियों को प्रिय इस ग्रन्थ की रचना आशाधर ने की थी ५६ । इसकी प्रशस्ति मे कहा गया है कि खडिल्यन्वय के परोपकारी युगो से युक्त एवं पापों से रहित जिस पापा साहु के अनुरोध से जिनयज्ञकल्प की रचना हुई थी उसके बहुदेव और पमदसिह नामक तीन पुत्रों में से हरदेव ने प्रार्थना की मुग्धबुद्धियो को समझाने के लिए महीचन्द्र साह के अनुरोध से आपने धर्मामृत कुशाग्र बुद्धि वालों के लिए भी अत्यन्त दुर्बोध है। अतः इसकी भी टीका रचने की कृपा करे तब आशाधर ने इसकी रचना की थी ६१ उपर्युक्त ग्रन्थो के अलावा आशाधर ने अन्य किसी ग्रन्थ की रचना नहीं की। यदि उन्होने अन्य ग्रन्थों की रचना की होती तो वि.स १३०० मे रचित अनागार में अवश्य उल्लेख होता। प. नाथूराम प्रेमी, प. कैलासचन्द शास्त्री, पं जुगलकिसोर मुख्तार प्रभृति विद्वानो ने भी आशाधर के उपर्युक्त ग्रन्थों के अलावा अन्य ग्रन्थो का उल्लेख किया है । किन्तु
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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