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________________ अनेकान्त/२५ चोरासी चौराहो पर विभिन्न दिशाओ से आने वाले विभिन्न विद्वानो के पडितो ओर कला-कोविदो की भीड रहती थी। वहाँ की 'शारदा-सदन विद्यापीठ' की ख्याति दूर-दूर तक व्याप्त थी। इस प्रकार की विद्यास्थली धारानगरी को छोड़ने का निर्णय करके नालछा (नलकच्छपुर) के लिए प्रस्थान करने का निर्णय आश्चर्य जनक प्रतीत होता है। इनकी प्रशस्ति से उपर्युक्त जिज्ञासा का समाधान हो जाता है। उन्होने स्वय लिखा है कि जेन शासन की प्रभावना (धर्माराधना-पाठन-पाठन) के लिए उन्होने धारानगरी छोडी। नालछा उस समय जैन धर्म से सम्पन्न श्रावको से व्याप्त था । अर्जुन वर्मा का राज्य था। अत धारा से दस कोश की दूरी पर स्थित नालछा नगर को इन्होने पनी कर्मभूमि बनाया १६ । वे नालछा मे लगभग ३५ वर्षों तक रहे । यहाँ के नेमिचैत्यालय मे जैन शास्त्रो का पठन-पाठन, साहित्य सृजना आदि करते हुए जैन धर्म की प्रभावना की। ७. शिष्यसम्पदा-: पडित आशाधर की शिष्य सम्पदा प्रचुर थी। उनके विद्याभ्यास समाप्त होते होते उनकी विद्वता की कीर्ति चतुर्दिक व्याप्त हो गई थी। उनकी अभूतपूर्व प्रतिभा ने श्रावको के अतिरिक्त अनेक मुनियो ओर जेनेतरो को आकर्षित किया था अपने शिष्यो को ऐसा ज्ञान कराया कि व्याकरण, काव्य, न्यायशास्त्र ओर धर्मशास्त्र मे उन्हे कोई विपक्षी जीत नही सकता था। प्रशस्ति मे उन्होने स्वय कहा हे "सुश्रुपा करने वाले शिष्यो मे ऐसे कौन हे जिन्हे आशाधर ने व्याकरण रूपी समद्र के पार शीघ्र ही न पहुंचा दिया हो, ऐसे कौन है जिन्होने आशाधर के षटदर्शन रूपी परमशास्त्र को लेकर अपने प्रतिवादियो को न जीता हो, आशाधर से निर्मल जिनवाणी रूपी दीपक ग्रहण करके जो मोक्ष मार्ग मे प्रबुद्ध न हुए हो और ऐसा कौन है जिसने आशाधर से काव्यामृत का पान करके इसके पुरूषो मे प्रतिष्ठा न प्राप्त की हो १७?" थन से सिद्ध है कि उनके शिष्य उन्ही के समान अपने-अपने विषय के निष्णात विद्वान थे। उनके शिष्यो मे निम्नाकित शिष्य प्रमुख एव उल्लेखनीय हैं १८ । १ पं. देवचन्द्र : इन्हे आशाधर ने व्याकरण शास्त्र मे निण्णात विद्वान बनाया था। २ वादीन्द्र विशाल कीर्ति आदि : इन्हे षडदर्शन एव न्याय शास्त्र पढाकर विपक्षियो को जीतने मे समर्थ ज्ञाता बनाया । चदुर्दिक के वादियो को जीत कर इन्होने महाप्रमाणिक चूडामणि की उपाधि प्राप्त की थी १६ ।। ३ भट्टारक देवचन्द्र, विनयचन्द्र आदि : इन्हे प आशाधर ने धर्मशास्त्र ( सिद्धान्त) का अE ययन कराया था। इसी अध्ययन के प्रभाव से वे मोक्षमार्ग की ओर उन्मुख हुए थे २०। ४ महाकवि मदनोपाध्याय आदि : को काव्यशास्त्र का अध्ययन करा रसिक जनो से प्रतिष्ठा प्राप्त करने का अधिकारी बनाया था। इसके अतिरिक्त मुनि उदयसेन कवि अर्हददास को इनका शिष्य होने का उल्लेख विद्वानो ने किया है।
SR No.538047
Book TitleAnekant 1994 Book 47 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size6 MB
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