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________________ जब महावीर अवतर्णि हुए थे। लेखक : शाह कुन्दनमल धनराजजी लापोदवालां-बेंगलोर आज से लगभग २५०० वर्ष पहेले जब हो गया था। जैन शासन में वह इतना अनुराग परमात्मा महावीर पवतीर्ण होने वाले थे उस समय रखता था कि दैविक शक्तिए भी उसकी श्रद्धा भारतवर्ष की दशा अति शोचनीय थी। जातिवाद को नहीं डिगा सकी थी। परंतु उसमें भी सामान्य का बोलबाला था। महिलाओं एवं क्षुद्रों को अत्यत जन की भाँति नारियों में अतीव राग था। कहते ही हीन अस्वथा में देखा जाता था। क्षुद्र तो ठोकरों है कि उसकी सैंकडों रानियों थी। चेलणा रानी मे उडाये जाते हैं । उनको पशु-तुल्य गिनकर को तो वह हर के लाया था जो कि उसको तारिका उनके सब अधिका: छीन लिये थे। सार्वजनिक स्वरुप सिद्ध हुई थी। अहिंसा के प्रति आस्था पूर्ण स्थानों पर उनको सडे रहने तक का अधिकार नहीं रुपेण होने से वह युद्धों में ज्यादा नहीं पडा। था। ब्राह्मण लोग पवे सर्वा हो चले थे। धर्म अवन्तीपति चडप्रद्योत धोखे से वत्सराज कम के सब अधिकार उनकी बपौती बन बैठी थी। उदयन को पकड लेता है। उसको अपनी पुत्री विद्याभ्यास भी मानो उनके आतिरिक्त कोई ज्यादा वासवदत्ता को पढ़ाने का कार्य सोपता है। उन नहीं कर सकता थे । सब ओर झटाधारी तापसों दोनों में गाढ संबंध हो जाता है और वे वहाँ से के झण्ड के झापड विचरण कर रहे थे। अभक्ष्य भाग निकलते है। प्रद्योत उनका असफल पीछा भक्षण कर धर्म धारा कहलाते थे। यज्ञ और शुष्क करता है। उनके प्रेम मिलन की कविताए क्रियाकांड ही धर्म का मूल समझा जाता था। उपलब्ध होती है। छडे चौक मूक पशु यज्ञ केड में होमे जाते थे। चडप्रद्योत सिधु-सौवीर देश के वितमय शहर इस तरह की पशु लि को धर्म गिना जाता था। की एक कबडा दासी पर मोहित हो जाता है। लोग भंघ श्रद्धा में इतने झकड गये थे कि प्राय : दासी आराध्य देव की प्रतिमा लेकर पलायन कर उनके सभी कार्य देवी देवताओं के नाम पर ही जाती है। वितमय का राजा उदयन तथा अन्य उसके होते थे । स्त्रीयों के मोक्षधिकार नहीं था। सामा- अधीन नरेश मिलकर चडप्रद्योत को पकडकर उसके जिक वातावरण इतना दुषित हो चला था कि सब चेहरे पर 'दासी पति' खुदवा कर उसे छोड ओर अंधकार ही 3 'घकार नजर आता था। न्याय देते है। नाम की कोई वस्तु नहीं रह गई थी। चंपानगरी का दधिवाहन राजा कौशांबी शहर राजने तक परिस्थिात ऊपर घेरा डाल देता है। परंतु कई महीनों तक ऊपर मुजब सामाजिक परिस्थिति के साथ देश सफलता नहीं मिलने पर पुन : चला जाता है। का राजनैतिक वातावरण भी बडा डांवाडोल था। कौशांबीपति शतानिक उसका पीछा कर उसका संक्षेप में निम्न क्त वाक्य उसका परिचय सर्वस्व छीन लेता है। करायेगे : ___ कोशलराज विदुदम शाक्यों के गणतत्र पर मग राज्य सबसे प्रबल एवं इसलिये आक्रमण करता है कि शाक्यों ने उसके प्रभावशाली था । वह का अधिपति महाराजा श्रेणिक पिता को हलके कुल का समझ कर एक दासी पुत्री बिंबिसार अत्यत कुल शाशक था। वह शुरु शुरु व्याह दी थी। उसका बदला लेने के निमित्त कई से बौद्ध धर्म के ति झुका हुआ था। बाद में हजार शाक्यों का उसने कच्चरघाण निकलवा महारानी चेलणा वे परिचय से पक्का जैन धर्मी दिया था। શ્રી મહાવીર જન્મ કલ્યાણક [ १७१ -
SR No.537861
Book TitleJain 1963 Book 61 Bhagwan Mahavir Janma Kalyanak Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Devchand Sheth
PublisherJain Office Bhavnagar
Publication Year1963
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Weekly, & India
File Size7 MB
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