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तीर्थ युधशान्तिनु 'मिशन.' जाएंगे परन्तु मुकदमा जारी रहेंगे। जैन समाजके प्रसिद्ध विचारशील और निःस्वार्थ सेवक मिस्टर वाडीलाल मोतीलाल शाहने भी परस्परके झगडों को मिटानके लिये इस बातका प्रयत्न किया था कि दोनों सम्पदायवाले आपुसमें मिलकर देश हितैषियों द्वारा फैसला कर लें, परन्तु हमे शोक के साथ लि. खना पड़ता है कि हमारी समाज के कुछ धनाढयों के नाम से एक लेख निकला है जिस में उन्होंने हमारे तथा शाह वाडीलाल जी के आशय को न समझकर दिगम्बर समाज को व्यर्थ में भड़काने और अशांति पैदा करने का प्रयन्त किया है। हमारा आशय यह कभी नहीं था और न है कि कोई सम्प्रदाय अपने स्वत्व को खो बैठे । हम बराबर यही कहते आए हैं और कह रहे हैं कि दोनों सम्प्रदायवाले कुछ पंच नियत करें और उन के सामने अपने अपने स्वत्वों को प्रमाण सहित सिद्ध करें। । दूसरे शब्दों में हम यह चाहते हैं कि पंचायत द्वारा फैसला हो जाए। अदालत में समय और धन का दुरुपयोग न किया जाए। हमें आश्चर्य होता है कि आप लोगों ने अदालत में लड़ने को पंचायत से अच्छा समझा है । इस में संदेह नहीं कि आप लोग सदा हमे धर्मशून्य कह कहकर अपने को धर्मात्मा सिद्ध किया करते हैं और अपने मुंह मियां मिटु बना करते हैं, और इस बात का हम पर कलंक लगाया करते हैं कि हम देशोन्नति , की धून में धर्मोन्नति की परवा नहीं करते; परन्तु पाठकगण 'जरा आप ही विचारिये कि जिस मनुष्य में देशोन्नति का इतना भी विचार नहीं कि अदालत में लड़ने की अपेक्षा पंचायत म जाना अच्छा है, उन से क्या धर्मोन्नति की आशा की जासकती है ? जिस मनुष्य को समाज के रुपये का दुरुपयोग होते