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________________ हरएक फीरके के सज्जनों के लिये उपदेशी कीतावें. सत रत्न.-इसमें जीव रुपी मुसाफीर विविध गति रुप सफर करता है उसको कथा अति रमुजो है. और भी ६ उपदेशी प्रकरग हैं. In राम-रासः-मुनिश्री केशराजजी कृत राम-रासको अति शुद्ध करके सुंदर पुस्तक बड़ी तकलीफले बनाया है. रसका सागर है, उपदेश का भंडार है, खुबीआका खजाना है. सुन्नेरी नाम, पक्का जील्द, सुंदर कागज होने पर भी मूल्य शीर्फ रु. १-८-0 सदण प्रातिके उपावः-प्रत्येक धर्मके मनुष्यको गुणानुराग की जुरुरत है. उस गुणका बड़ी ही उमा शैलिसे इस ग्रंथम बोध वि या गया है. और भी सत्य वचन, सद्भावना इत्यादि विषयोंका बोध है. रु०॥ संसारमै खुख कहां है ? भाग १ लाः-प्रत्येक मनु य सुख तो ढुंढ रहा है; मगर बतानेवाले अनुभवी नहीं होनेसे गैरमार्गको रुग जाते हैं. आपको ज्यादा कहनेकी कोइ जुरुरत नहीं है. एक दफा र ह पुस्तक पढ लो, सुखका रास्ता स्वतः प्राज्ञ हो जायगा. ६ मास में ४००० . प्रत जैन व अन्यधर्मी महाशयांने खरीद करके विना मूल्य बांट दी है . अखबार वालेांने उसकी प्रशंसा की है. मूल्य शीर्फ ०-४-० * संसारमें सुख कहां है-भाग २ रा:- मूल्य ०-४-.... सच्चे सुखकी कुंजियां:-इसमें सुखकी कुंजियां बताई गई हैं. मूल्य र । धर्मसिंह-बावनी:-स्वर्गस्थ महात्मा श्री धर्मसिंहजो महाराज कर उपदेशी काव्य अति मनोरंजक है. रु. ०।। स्वरशास्त्र:-जिसमें इडा, पींगला, सुषुम्णा नाडीका बयान है. हा एक काममें विजय प्राप्त करनेकी तरकोब बतानेवाला यह पुस्तक देव नागरी लिपिमें मगर गुजराती जबानमें है. मूल्य ०-४ नमीराजः-अध्यात्मका ज्ञान और व्यवहार-शुद्धिका ज्ञान चाहिरे तो नमीराज' प्रथम पढो. गृहस्थका कर्तव्य व त्यागीका कर्तव्य किसके कहना, जैसा ' नमीराज ' पुस्तकमें समझाया गया है वैसा थोडे ही पुस्तकमें दिखा पडेगा. वार्ता भी अति रसिक है. हिंदी भाषांतरका रु. ० पताः-वाडीलाल मोतीलाल शाह. सम्पादक, जैनसमाचार, मु. अहमदाबाद.
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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