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________________ 'कहेणी' माथे 'करणी' अथवा 'ज्ञान' साथे 'क्रिया'. ___ ज्ञान अने क्रियाथी मोक्ष छे' एम जे कहेवाय छे त्हेनो अर्थ केटलाफ एम करे छे के प्रथम ज्ञान थाय अने पछी क्रिया याय. परन्तु खरो अर्थ ए छे के ज्ञानपूर्वक समजपूर्वक क्रिया करवी, तो न मोक्ष मळे. मतलब के मोक्ष तो क्रियाथी जछे, मात्र समजबाथी नहि; पण ते क्रिया देखादेखीथी के स्वार्थथी थती न होवी जोइए, संपूर्ण विवेक साये-ज्ञानपूर्वक होवी जोइए. वळी ध्यानमा रहेवू जोइए के 'क्रिया' एटले ' Ceremonials '--'विधि'ओ एवो अहीं अर्थ नथी; पण Action एटले 'कार्य' एवा रुपमा छे. माणस एक वात खरी माने पण वर्तनमा ते खरी वातनो अमल न करे तो तेथी काइ मोक्ष न मळे. अलबत आटलं तो खरुंज छ के 'जाणपणुं' ए पण म्होटी बात छे. जाणपणुं हशे तो कोइक दिवस तदनुसार क्रिया--वर्तन पण थशे. तेटली अपेक्षाए मात्र जाणपणुं धरावता पुरषो पण अपमानने लायक तो नथी ज. परन्तु जेओ म्होटी म्होटी वातो मात्र पोताना ज्ञान- प्रदर्शन करवाने माटे करे अने वर्तनमा छेक ज नीची पंक्तिए जइ बेसे, मतलब के एक सामान्य माणस पण न करे एवां दुष्ट कामो करे एवा माणसो तो खरेखर धर्मने लजवनाराज गणाय. एवाना संबंधमां कबीरजीना नाबरखा बहु विचारवा जेवा छे. आपणे से हमणां ज जोइशं.
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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