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________________ सुबुद्धि मंत्री वि.सं. २०६४, मासो सु-७, भंगणवा . ७-१०-२००८ .१०८ धर्म था विशेषis सुबुद्धि मंत्री पुद्गल दूसरे पल बेस्वाद और चखना भीनचाहे ऐसे बन जाते हैं। तो कोई बार मधुर भी बन जाते हैं। जिन पुद्गलों को स्पर्श करने का हमें बार बार मन होता है वहीं पुद्गल कई बार छूना भीनचाहे ऐसे हो जाते हैं। इससे परिणाम भी कई बार आते हैं । अमुक वस्तु अच्छी और फलां वस्तु खराब है ऐसा - जितशत्रु राजा चम्पा के राज्य का स्वामी था। उसे आमतौर पर नियम नहीं। कई बार अच्छी चीजे संजोगवशात् धारिणी नामक पट्टरानी थी । अदीनशत्र नामक उसका बिगडभीजाती है और खराब चीजे सुधर भीजाती है। वह तो युवराज था। राज्य का कार्यभार सुबुद्धिनामक श्रमणोपासक मात्र पुद्गलों के स्वभाव और संयोग की विचित्रता है। उसकामंत्रीचलाताथा। विवेकशील सुबुद्धि की ये तत्त्व भरपूर बाते जितशत्रु सुबुद्धि विवेकशील श्रावक था । जितशत्रु राज्य को पसन्द आयी नहीं, क्योंकि उसके हृदय में उस समय कारभार में इस मंत्री की सलाह लेता। एक बार राजाने अपने मिथ्यात्व प्रवेश कर चुका था; मगर वह चर्चा न करके चुप ही यहाँ महोत्सव मनाया उस निमित्त पर उसने अपने यहाँ राज्य रहा। के अधिकारी सामंत एवं अग्रणी नागरिकों को भोजन के लिये निमंत्रण दिया। एक बार जितशत्रु राजा घोडे पर सवार होकर बड़े परिवार के साथ नगर के बाहर एक खूब दुर्गंध फेलाती हुईखाई पांच पकवान, कई सब्जियाँ इत्यादि सुंदर प्रकार की के समीप से गुजर रहा था, उसमें रहे पानी का रंग खराब था रसवंती तैयार हुई। सबके साथ भोजन करते हुए राजा ने खूब और सडे हुए मुर्दे जैसी गंध उसमें से आ रही थी। संख्याबद्ध रसपूर्वक अपनी रसोई की प्रशंसा की। सबने राजा की हाँ में हाँ कीडों से गंदा पानी खदबदा रहा था । वहाँ पानी की असह्य मिलाई परंतु विवेकशील और गंभीर मंत्रीने थोडी देर बाद दुर्गंध से राजा को नाक दबाना पड़ा । इस दुर्गंध से उबकर राजा को कहा, 'प्रभु! आपने कहा था वह बराबर है। पुद्गल थोडा आगे जाकर उसने कहा, 'कितना खराब है यह पानी? के इस प्रकार के स्वभाव में कुछ भी नया नहीं हैं फिर भी ये सब सडे मुर्दे की तरह गंधमार रहा है। उसका स्वाद और स्पर्श भी चीजें आमतौर से अच्छी ही हैं या आमतौर पर बुरी हैं यु नहीं कितना बुरा होगा ?' राजा की यह बात भी ज्ञाता और द्रष्टा कहा जा सकता । जो विषय आज मनोहर दिखता है, वह मंत्री के सिवा सबने स्वीकृत की। सिर्फ सुबुद्धि मंत्री ने कहा, विषय दूसरे पल में खराब हो जाता है । जो पुद्गल एक पल 'स्वामीन ! मझे तो इस बात में कछ भी नवीनता नहीं लगती श्रवण आये पसंद को ऐसा मधुर होता है, तो दूसरे पल श्रवण .. 1. मैंने पहले कहा था उस प्रकार पदगलों के स्वभाव की ही को नापसंद हो ऐसे कठोर और कर्णकटु बन जाते हैं . . 4. सब विचित्रता है। और जो पुद्गल आँख को अत्यंत प्रसन्नता . देनेवाले होते हैं वे कई बार देखने भी न चाहो ल राजा जितशत्रु को बुरा लगा । उसने ऐसे हो जाते हैं। सुगंधी पुद्गल सिर को तरबतर करदे व सुबुद्धि को कहा, 'तेरा अभिप्राय बुरा नहीं है । मुझे तो तेरा कथन ही दुराग्रह भरा ही लगता है। जो कुछ ऐसे सुवास देनेवाले भी बन जाते हैं । जीभ को स्वाद देनेवाले
SR No.537274
Book TitleJain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2008
Total Pages228
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size11 MB
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