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श्री शुभंकर
वि.सं. २०६४, मासो सुE-७, मंगलवार .
७-१०-२००८.१०८ धर्म था विशेषis
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पृथ्वीपुर नामक नगर में शुभंकर नामक कहो।' गुरु ने कहा, 'संध्या समय पर आप यहाँ आना, उस एक ब्राह्मण रहता था। उसको धर्म का मर्म समय मैं उसका नाम कहूंगा।' ब्राह्मण अपने घर लौटा। जाननेवाली जैनमति-गुणवंती नामक भार्या
गुरु ने सोचा, 'इस ब्राह्मण को प्रतिबोध कराने के थी। वह विद्याभ्यास करने के लिये परदेश
लिये जरुर इसकी भार्या ने भेजा लगता है, इसलिये कोई भी गया । वहाँ उसने चार वेद, अठ्ठाराह पुराण, उपाय से उसे प्रतिबोधित करुं। यों सोचकर एक श्रद्धालु व्याकरण, अलंकार, न्याय, साहित्य, कोश
श्रावक को गुरु ने कहा, 'अपने घर से दो अमुल्य रत्न लाकर वगैरह कई शास्त्रों का अभ्यास किया ।
मुझे दीजिये, एक व्यक्ति के प्रतिबोधित करने के लिये जरूरत तत्पश्चात् स्थान स्थान पर अनेक विद्वानों को
है और दूसरा कोई चाण्डाल से एक गधे का मूर्दा उठवाकर इस वाद-विवाद में जीतकर जय पाता हुआ उपाश्रय से सो गज की दुरी पर एकांत जगह रखवा दे।' श्रावक अपने घर लौटा । वहाँ भी वह अपने
ने दोनों कार्य शीघ्र कर दिये । संध्या समय होते ही वह ब्राह्मण शास्त्रज्ञान का आडम्बर सब लोगों को
गुरु के पास आया । गुरु ने उसे एकांत में कहा, 'हमारा एक दिखाने लगा। वह देखकर उसकी जैन धर्मी भार्या ने सोचा कि
कार्य करना कबूल करे तो वह एक रत्न दूं और कार्य समाप्त 'यह मेरा पति एकांतिक शास्त्र पढ़ा है, परंतु स्याद्वाद मार्ग को करने के बाद दूसरा रत्न भी दूंगा।' ब्राह्मण ने रत्न देखकर हर्ष नहीं जाननेवाला मनुष्य वस्तु का यथायोग्य विवेचन जानता
से कहा, 'हे पूज्य ! काम बताइये। गुरु ने कहा, 'इस उपाश्रय नहीं है, इसलिये मै उसको कुछ पूछं। ऐसा निर्णय करके
के नज़दीक एक गधे का शव पड़ा हुआ है जिसके पड़े होने के अपने पति को पूछा, 'हे स्वामी ! सर्व पाप का बाप कौन ?'
कारण हमें हमारे स्वाध्याय वगैरह धर्म कार्य में विघ्न होता हैं, ब्राह्मण ने कह , 'हे प्रिया ! मैं शास्त्र में देखकर बताऊंगा।'
अर्थात हम कर सकते नहीं है, इसलिये तू उसे उठाकर गाँव इसके बाद जितने शास्त्र का अभ्यास किया था वे सब उसने
बाहर फेंक आ' ब्राह्मण ने सोचा, 'इस समय अंधेरा हो चूका है देखे मगर उससे पाप का बाप कहाँ भी निकला नहीं। इससे
जिससे मझवेदपारगामी को कौन पहचान सकेगा? 'इसलिये खेद पाकर उर ने स्त्री को कहा, 'हे प्रिया ! तेरे प्रश्न काउत्तर
स्वार्थ साधलूं।' ऐसा सोचकर चाण्डाल जैसा भेष बनाकर वह तो किसी शारस में से निकलता नहीं है परंतु तूने यह प्रश्न सुना
शव कंधे पर चढ़ाकर यज्ञोपवित छुपाकर उसे गाँव बाहर फेंक कहाँ से?' वह बोली, 'रास्ते जाते हुए कोई जैन मुनि के मुख
आया। तत्पाश्चात स्नान करके जल्दी से गुरु के पास आया से सुना था कि सर्व पापो का एक पिता है' सो मैं आपको . . और कहा, 'हु स्वामी! आपका कार्य कर आया! इसलिये उसका नाम पूछती हूँ।' विप्र बोला, 'मैं साधु के I, 'म साधु क.
.. आपका वचन आप पालो और दूसरा रत्न दे दों' पास जाकर पूछ आऊं। बाद में वह विप्र जैन र
'गुरुजी ने दूसरा रत्न भी उसे दिया । तत्पश्चात साधू के पास जाकर बैठा और संस्कृत भाषा में कई
ब्राह्मण ने सूरि को अपने प्रश्न का उत्तर पूछा, तब प्रश्न किये; उसके यथोचित उत्तर सुनकर वह बड़ा खुश गुरु ने कहा, 'क्या अब भी तू तेरे प्रश्न का उत्तर नहीं समझ हआ। तत्पश्चात् उसने पूछा, 'हे स्वामी! पाप के बाप का नाम | पायाय
का नाम | पाया हैं ?' यह सुनकर लघुकर्मी और सुलभ बीधि होने तथा
मन
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