________________
00
जैन इतिहास की......
00
00
००००OO..
श्री वैनशासन (सहवाडी )
००
५०० धनुष्य का अंतर ज्योतिष देवी में तारामंडल देवों का होता है ।
५०० सोना मोहर सोमदेव श्रेष्ठी ने गुरु भगवन्त समक्ष गहुंली पर रखी थी।
५०० माईल ऊंचा रजत निर्मित शुक्र का विमान है।
५०० माईल विस्तारवंत मंगल का विमान है ।
५०० रानियां छह भाषा को समझने वाली शालिवाहन राजा की थीं।
५०० शिष्यों के गुरु श्री सुमंगलाचार्य मुत्यु पाकर अनार्यदेश में उत्पन्न हुए । ५०० द्रम देकर मुस्लिम के पास रही जिनप्रतिमा मेघाशा ने प्राप्त की थी ।
फ ५०० धनुष्य की अवगाहन वाले मनुष्य भरतक्षेत्रे में चौथे आरे में होते हैं । फ ५०० योजन मूल में चोडै गजदंता पर्वत है ।
फ ५०० योजन पूर्व में पश्चिम में लम्बे १६ वक्षकार पर्वत हैं ।
५०० योजन ऊंचे वक्षकार पर्वत रत्नमय हैं ।
जैन इतिहास की " ५००' की अनुपम विशेषता
फ ५०० रथ में ५०० रानियों को बिठाकर भव्यता से दशार्णभद्र राजा प्रभुवीर के पास गये । ५०० वर्ष के आयुष्य वाले जुठल श्रावक को उनकी पत्नियों ने जला डाला था ।
५०० गांव की जागीर धन्यकुमार को राजकुंवरी के लग्न के समय शतानिक राजा ने भेंट दी । ५०० गांव भेंट में मिलते हुए भी नलरजा ने नही स्वीकारी ।
५०० श्लोक एक ही रात में धर्मसिंह मुनिवर ने कंठस्थ किये थे ।
५०० चारों के नायक अभग्गसेन की आठ पत्नियां थीं ।
oc
००
100
५०० योजन ऊंचे शिखर १६ वक्षकार पर्वतों के हैं।
५०० योजन ऊंची ९ (नौ) कुटो नीलवंत पर्वत की है।
5 ५०० शिष्यो के गुरु नयशील सूरि ईयाकाले काल कर नाग बने थे ।
5 ५०० मुनिवरों के साथ विचरण करते सोमसुन्दर सूरि ने छह विगई त्यागी थी । ५०० आयम्बिल के आराधक वर्धमानसूरि शंखेश्वर तीर्थ के अधिष्ठायक बने है । ५०० वर्ष से अधिक पल्योपम का उत्कृष्ट आयुष्य सूर्य की देवी का होता है। फ ५०० बार पुंडरिक - कंडरिक अध्ययन का स्वाध्याय वज्रकुमार ने पूर्वभव में किया था ।
00
फ ५०० पौषध गुजरात के दीव बंदर (शहर) में पू. हीरसूरिजी निश्रा में होते थे । ५०० दुकान वाहन बैलगाडों का परिग्रह परिमाण कुबेर श्रेष्ठी ने लिया था । ५०० राजकुमारों के साथ सोमराजकुमार ने पार्श्वनाथ भगवान के पास दीक्षा ली थी । ५०० पंडितों से परिवृत महेन्द्रपाल राजवी ने बहुश्रुत पद की आराधना की थी।
५०० श्रेष्ठिपुत्रों के साथ दीक्षा लेने वाले वीरभद्र श्रेष्ठी आगामी काल में तीर्थकर होंगे । फ ५०० रोहीणी आदि महाविद्या विद्याप्रवाह नामक चौदह पूर्व के पूर्व में आती है । फ ५०० मुनिवरों के साथ श्री अर्हन्नाचार्य अंग वंग- कलिंग की ओर विचरे थे । फ ५०० मुनियो के साथ श्री यवाचार्यजी ने काशी - कौशल में विचरण किया था । ५०० रानियों का त्याग कर महाबल राजवी ने दीक्षा ग्रहण की थी।
00
ao
०
३८०
वर्ष : १५ : ३१ ता. २७-१-२००४
10
००
००
००
-
ao
००००
०० 00
आत्मिक मुक्ति (क्रमशः )
००
००
1500 1000