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________________ न इतिहास की..... श्री शासन (अ6पाडीs) *वर्ष : ११ * is : २७ ता. २५-५-२००४ जल इतिहास की 400 की अषण विशेषता ५०० की संख्या में जगत में जैन जगत की अनुठी बातों का अनुठा संयोजन ५०० हाथ ऊँचे विशाल स्तम्भ को सहज रुप से अतुलबली नलराजा ने उडाख फेंका था। ५०० तापसों के विकट वन में दमयन्ती सती ने प्रतिबोध दिया था। ५०० पंडित भोजराजा की राजसभा को शोभायमान करते थे। + ५०० आचार्य भगवंत पेथडशाह मंत्रीश्वर के महापदयात्रा संध में थे। ५०० योजन ऊँचा किला (परकोटा) सूर्याभदेव का है। ___५०० कुटुम्बों का प्रतिबोध देकर देवसूरीजी ने जैन बनवाये थे। ५०० पौषधशालाओं का निर्माण वस्तपाल मंत्रीश्वर ने करवाया था। . 卐 ५०० रानियाँ रघुवंश कुल शिरमार अयोध्या नरेश दशरथ राजा की थी। 卐 ५०० रानियाँ कुशस्थल नरेश प्रतापसिंह राजा की थी। ५०० उपाश्रयों का निर्माण महामंत्री वस्तुपाल-तेजपाल ने करवाया था। 卐 ५०० धनुष्यो की काया प्रमाण का मत्स्य सागर श्रेष्टि का आत्मा बना था। 卐 ५०० जहाजों को श्रीपाल कुंवर ने सिद्धचक्र यन्त्र प्रभाव से चलाया था। है ५०० उच्च कोटि के अश्व भीमदेव राजा ने विमलशाह को भेंट दिये थे। 卐 ५०० वर्षका सयंम पर्याय रहनेमि मुनिवर का (नेमिनाथ के भाई) का था। . 卐 ५०० श्रावक-श्राविका को आचार्य श्री हेमविमल सूरि ने दीक्षा दी थी। 卐 ५०० मुनिवरों के साथ पू. आर्य सुहस्ति सुरीवर अवन्ति नगरी में पधारे थे। 卐 ५०० विद्याधर मुमक्षुओं के साथ विद्याधर सम्राट रत्नचुड ने दीक्षा ली थी। 卐 ५०० धनुष लम्बे सिंहासन के उपर तारक श्री जिनेश्वरदेव के अभिषेक होते हैं। ॥ ५०० योजन उंचि ११ कुटी चुल्ल हिमवंत पर्वत के ऊपर आई हुई है। ॥ ५०० वर्ष की अयु पूर्ण कर गोत्रासपुत्र दुसरी नरक में गये। 卐 ५०० सुर्वण मोहर देकर एक अनूठा श्लोक (गाथ) सागर चन्द्र ने खरीदा था। ५०० सर्वण मोहर उत्पन्न करने की शक्ति वयरसेन में थी। 卐 ५०० पत्नियाँ मल्लिनाथ भगवान को पूर्व भव में (राजा के अवतार में) थी। ५०० पत्नियाँ का त्याग कर दीक्षा लेकर सारंणकुमार मुनि १२ वर्ष बाद मोक्ष गये। 卐 ५०० पत्नियाँ के स्वामि सुबाहु श्रेष्ठी ने सुदत्त अणगार को गोचरी दी थी। 卐 ५०० पत्नियां के स्वामि भद्रनंदीने पूर्वभव में युगबाहु तीर्थंकर भक्ति की थी। 卐 ५०० रानियों की हत्या एक रानी में आसक्त बने सिंहसेन राजा ने की थी। ५०० रानियों का त्याग कर दशार्णभद्र राजवी भगवान के शिष्य बने थे। ५०० सोना महोर देकर एक-एक ऐसी ५०० पत्निर्या कुमार नंदीसोनी की थी। - आत्मिक मुक्ति (क्रमशः)
SR No.537269
Book TitleJain Shasan 2003 2004 Book 16 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2003
Total Pages382
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size23 MB
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