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________________ स्तुती-प्रमाण" श्रीनशासन (216वाडीs) वर्ष:१५ :२3*.०८-४-२००३ "श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः" "श्री भाण्डवपुर तीर्थ राजेन्द्र गुरुमंदिर में" (“स्तुती-प्रमाण") देखी जगत में तीनथुई सुखकारी, इण विन न हो भवपारी, | सदारम भी वेश विडबंक, पेट भरण हुशीयारी, हरिभद्र सूरी ग्रंथ प्रसाचक, अभय देवार्य टीकारी, | भद्र जीवो ने भर्ममां नाखी जाए जमारो हारी ॥ १३॥ . तर्थस्तुती किलार्वाचीना बोले,प्रत्यक्ष पाठ दिखारी॥१॥ पडिकमण देव वन्दन मांहे, देव थुई नित्यकारी, आवश्यक सुत्ररु टोप्पणी चूरणी, निर जुत्ती जयकारी, | श्रुतदेव भवनदेव मनावी, संवर कार्य बिगरी ॥ १४ ॥ उतराध्ययनी पाई टीका, तीनज थई उंचारी ॥ २॥ सम्मतस्सय शुद्धि पद छ, सूत्र वन्दे तु मजारी, बहत्कल्प भाष्य ज देखो, वली टीका हितकारी, | तेहने उत्थापी कल्पित बोले, समदिड़ी दिवारी ॥ १५॥ पूर्वानुयायी तीन ज थुई, आगम लेख विचारी ॥ ३॥ सूत्र तणो इक वर्ग उत्थापे, होवे अनंत संसारी, पद्मसूरी समाचारी पेखी, परंपरागम धारी, | कल्पित पाठजो मलवे तेहनी, शी गतिथाय विचारी॥१६॥ चरित्र करणी मोक्ष निसरणी, तीन थुई ज लखारी ॥४॥ प्रबल्य पूण्य ना योग ज मलीयो, जैन धर्म शणगारी भद्रबाहु श्रुत केवली सरखा, निषेध कर दिल धारी | सुगुरु संयोगे बोधने पामी, तीन तत्व लो धारी।। १७ ।। देवानी थई रे बोलता, जाय धर्म हारी ॥ ५ ॥ शिट परंपराये तीन ज थर्ट अर्वाचीन थई सारी दश पूर्व श्री वज सूरी, शासन ना उपकारी | जिन आणा जो उरमा धरशी, वरशी शुभ नारी ।। १८ ।। . कै आराधना कारणे किनी, तीन में दोष न लगारी॥६॥ तपगच्छमण्डन महियल राजे, सूरी राजेन्द्र जितारी अरिहंत अनोपम देव ने छंडी, याचे देव धुतारी तसपदपंकज आणारंगी, कथनयतिन्द्र जयकारी॥ १९॥ नि शासनमां कलंकी जाणो, एतो संसार वधारी॥७॥ यग शास्त्र धर्म संग्रह गंथे, प्रवचन सारे उध्धारी ॥समाप्त॥ र प्रतिक्रमण गर्भ हेतु निरखी, ललित विस्तरा कारी॥८॥ | नोटः- आलेख श्री भाण्डवपुर तीर्थमें राजेन्द्र गुरु मंदिर में * विचारामृत संग हकारी, संघी चार विचारी, | पेसता सामेना आरसनाथांभलाऊपरलखेलो छ। करणे देवनी क्षुइज भाषी, लेवो तत्व विचारी ॥ ९॥ ચાર થોઇની ટીકા કરનારા પોતાના આત્માतीन स्तुति प्रतिपादक जगमें, दिसे गंथ अपारी, निरीक्षए।३१३री छ.-सं. वेख कहां करीये, यहां पर लिखता न पारी ॥ १०॥ MOOD PROHOROPORORD(१२२२) EDEOPOROREOF दे पासक कुमटी-कुटील ने, मोह कोह भरारी, उमत्त प्रलापे बोले पापी, रुले दीर्घ संसारी ॥११॥ सत्र मर्म न जाणे कि चिंत, गर्व करे महामारी हित नहि पण अहितथीभरिया, जाने नरक मझारी॥१२॥
SR No.537268
Book TitleJain Shasan 2002 2003 Book 23 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2002
Total Pages302
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size17 MB
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