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________________ DAANAADAAAAAAAAAAAAAAA ठ नपर प्रश्न उत्तर . ite *"श्रीन शासन (6413) - वर्ष १४ । सं ११-१२ ता. 5- १-२००१ |प्रश्न - Gतर || હપ્તો ૪ - समाधानता : 40 यासी प्रश्न - क्या उपशमसमकित वाला उपशमश्रेणी | द्वारा क्षय और उदयावालिका के बाहर के फर्म का ही लेता है ? उदयविष्कर्म स्वस्प उपशम क्षयोपश्म कहलाता है । उत्तर - उपशम समकित दो प्रकार का होता है | विशेष गहरी समझ के लिये पंडित धीरजलाल। महेता (१) अनादि मिथ्याद्रष्टि जब समकित प्राप्त करता है द्वारा विवेचित कर्मग्रंथ (प्रथम या द्वितीय) के पुस्तक तब सर्वप्रथम औपशमिक समकित (२) उपशमश्रेणी के का लिया हुआ पं. श्री अभयशेखरविजयजी म. रचित पूर्व मै क्षायिक समकिती के अलावा सभी जीव अवश्य परिशिष्ट और श्री जयघोषसूरीश्वरजी म. द्वार बनाया औपमिक सम्यक्त्व प्राप्त करके बाद में उपशमश्रेणी हुआ "क्षयोपशम नी विचारणा" नामक लेख को पं. पर चहते है। श्री अभयशेखर वि. म. के “कर्मप्रत्रत ना पदार्थो'' पुस्तक के पीछे परिशिष्ट रूप में दिया गया है . प्रश्न - वेदक समकित किसे कहते है। स्वतंत्र पुस्तक भी है ये दोनो कुमारपाल उत्तर - क्षायिक सम्यकत्व के पूर्व में जो शाह घोलका से प्राप्त कर सकते है । सम्यक मोहनीय के चरमग्रास का वेदन उसे वेदक सम्यक च कहतें है। प्रश्न - निवृत्तिगुणस्थानक और निवृत्ति गुणस्थानक में क्या फर्क है, निवृत्ति में ख स क्या तत्पश्चात् दूसरे क्षण में जीव क्षायिक सम्यकत्व # प्राप्त करता है । मतलब कि क्षायोपाशिक सम्यकत्व करता है। की अवस्था विशेष स्वस्प वेदक सम्यक्त्व हुआ । उतर - निवृत्ति में प्रविष्ट जीवो के अयवसाय प्रश्न - उपशमवेदक और क्षायिक वेदक समकित हरेक समय परस्पर भिन्न भिन्न हो सकते है उनकी और योपशम किसे कहते है। तरतमता के असंख्यात लेकाकाश प्रदेश प्रमाण भेद हो सकते है । अनिवृत्ति में प्रविष्ट जीवो में तत् समय में उत्तर - उपशमवेदक और क्षायिक वेदक समान परिणाम होते है । अनेक जीवो का अयवसाय Bसमकिन सुनने में आये नहीं है । अगर कहीं पर स्थान विवक्षित समय में एक ही होता है । इसलिये उल्लेख हो तो इस प्रशम घटा सकते है । (१) वेदक विशुद्धिको छिन्नमुक्तावली संस्थित बताई है । तल कि सम्यक व क्षायोपशमिक सम्यकत्व के लिये भी व्यवहार निवृत्ति में विशुद्धि विषम चतुरस संस्थान वाली होता।। अतः जीव क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के बाद होती है। उपशम सम्यक्त्व (श्रेणी के पूर्व का) प्राप्त करता है । वह शम वेदक और जिस क्षायोपशमिक सम्यक्त्व उपशम श्रेणि हो तो उसमें ४ अनन्तानुवं पी और के बाद क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करता है वह क्षायिक दर्शनत्रिक इस दर्शनअप्रक की उपशम सहते पुणठाणे पर करके निवृत्ति (८ वे) में पांच अपू। वस्तु वेदक अथवा इस प्रकार. (२) वेदयरीति वेदक = वेदन करने वाला । उपशम सम्यक्त्व का वेदन करने स्थितिघात रसघात स्थितिबंध - गुणश्रेणी - णसंक्रम वाला यह उपशम- वेदक और क्षायिकसम्यक्त्व का करता है शेष प्रकृत्ति - उपशम ९ वें अनि पृत्ति में वेदन करने वाला वह क्षायिक वेदक । क्षपक में सातवें पर दर्शन आतक की क्षपणा करके ८ वे में पांच अपूर्व वस्तुओ शेष प्रकृत्ति क्षपणा , वे में उदयावालिका अत उदय पाप कर्म का वेदन | समजना P A RSHORORSHAADHAAROHAR १२६ । SAJHASAAHEARHARASHTRAJASRHAASARDARSHA DEREREREPURERER
SR No.537265
Book TitleJain Shasan 2001 2002 Book 14 Ank 01 to 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2001
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size21 MB
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