SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमति इदु जैन का अज्ञान श्रीन शासन (6413). वर्ष १३ . १८/१८ . ..-११००१ માથા ૧ ૨ શિંગડા નથી હોતા પણ જેવા પ્રકારની | રહેવાની અને ભોળા - ભદ્રીક લોકોને દૂર રાખી ભાષાનો ઉપયોગ કરે તેના પરથી કુલીન છે કે અકુલીન | આત્માવિઘાતક પ્રવૃત્તિથી બચાવવાની જરૂર છે. ] તે જણાઈ આવે છે.'' તે જ રીતના ઉન્માર્ગગામી કે જે પરમતારક પરમગુરૂદેવેશ શ્રીજીએ માસન ઉત્સુત્ર ષિીના માથા ઉપર શિંગડા નથી હોતા પણ વિદ્યાતક પ્રવૃત્તિનો જે રીતના પ્રતિકાર કરેલો તેના જ આજ્ઞાબ હ્ય, વગર પૈસે મનોરંજન કરાવનારી સસ્તી વારસદારો આ બાબતમાં કેમ ચૂપ છે તે જ સમજાતું પ્રસિદ્ધિ અને નામનાની પ્રવૃત્તિથી આપોઆપ પોતાની નથી. શાણાને શિખામણ શાનમાં, બીજાને કાન પણ ४ातनेोणावी छे. નહિ સમજી આવી પ્રવૃત્તિઓમાં ઉપાદેય બુદ્ધિ ન આવી કે વલજ્ઞાન અને કેવલજ્ઞાનીની ક્રુર મશ્કરી કરનારા જાય તેની કાળજી રાખી સૌ સન્માર્ગે સ્થિર બની આવો ૯ કોની આવી પ્રવૃત્તિમાં જરાપણ સાથે - સહકાર આત્મકલ્યાણના ભાગી બનો તે જ હાર્દિક મંગલ આપવા જેવો નથી પણ દરેકે દરેક આત્મહિતેચ્છએ તેનો आमना. મક્કમ પ્રતિકાર કરી તેનો સબળ વિરોધ કરી, તેમને सध्याहन -२०५७, मा.सु.५, अमलनेर રોકવાની જરૂર છે. કદાચ ન રોકી શકાય તો તેનાથી દૂર श्रीमति इन्दु जैन का अज्ञान जै. समाज द्वारा गठित महोत्सव महासमिति की | उपरोक्त पर एक श्रावक की टिप्पणी कार्याध्या श्रीमति इन्दु जैन ने दोनों ही स्तरों पर भगवान परमात्मा महावीर के पास पक्षी का बैठना, महावीर का महावीर की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार का आह्वान करते हुए विश में शांति के लिए अहिंसा को ही एकमात्र उपाय आँख खोलने से पक्षी का उड़ जाना ऐसा द्रष्टान्त श्रीती इन्दु बताया । । उनके द्वारा न्यूयोर्क में पढ़ा गया आलेख : जैन द्वारा कहा गया, जो पहली बार सुनने में आया । भर वान महावीर गहन ध्यान की मुद्रा में तल्लीन थे । आचरण से शुद्ध एक श्रावक ने इस पर टिप्पणी करते हुए उनकी द आंखों से एक असाधारण शांति और पवित्रता कहा कि 'यह उनकी नई खोज है, इतिहास में ऐसा कहीं बिखर रही थी । एक पक्षी उड़ता हुआ आया और उनके नहीं मिलता।' पास बैट गया । उन्होंने जब आंखें खोली तो पक्षी डर कर उड़ गय । भगवान महावीर ने सोचा 'मनुष्य की आंखें अगर कोई कहे कि अकबर हुमायूं का पिता था तो इसे खोलने की क्रिया में भी हिंसा छुपी है ।' अ-हिंसा का अर्थ खोज ही कहा जायेगा । इतिहास में तो कहीं भी ऐस उल्लेख हिंसा और भय की समाप्ति तथा सम्पूर्ण मानवता को प्रेम नहीं है। में आबार कर लेना है । प्रेम और अनुराग की यह भाषा हम जैन धर्म को झूठे उदाहरणों द्वारा प्रचारित नहीं कर आज के युवाओं से बेहतर और कौन समझेगा ? मैं आज सकते क्योंकि शोधकर्ता यदि आकर श्रीमति इन्दु जैन के इस के युवा का अभिनन्दन करती हूँ । आप सभी का इस युवा - आन्दो ठन में शामिल होने के लिए स्वागत है । मैं उस द्रष्टान्त की खोज करें तो उन्हें ऐसा कहीं नहीं मिलेगा और सर्वव्याप नारी शक्ति का आह्वान करना चाहूंगी जो ऐसे में वे जैन धर्म के सत्य महाव्रत का क्या अर्थ लायेंगे ? अहिंसा का रूप है और हमारे बीच मौजूद है । महिलाओं किसी झूठ को हजार बार बोलने से भले ही वह साथ लगने को मौक' दीजिए और फिर देखिए कि किस तरह सहजता | लगे, पर वह झूठ सत्य नहीं हो सकता । के साथ अहिंसा विश्व - धर्म के रूप में उभर आएगी। भगवान महावीर २६००वाँ जन्म कल्याणक महोत्सव अं। में मैं एक महत्वपूर्ण बात का उल्लेख करना समिति में कितने युवा व कितनी महिलाओं को लिया चाहुँगी राष्ट्रसंघ के इस महान प्रयास को आगे बढाने के गया ? कार्याध्यक्ष श्रीमति इन्दु जैन की कथनी और करनी मे लिए इस बात को आप सबके आशीर्वाद की जरूरत है। असमानता को इस बिन्दु से भी मापा जा सकता है प्रेषक : पारस दास जैन, सहायक सम्पादक, नवभारत टाइम्स (स्थूलिभद्र संदेश-१०२०००)
SR No.537263
Book TitleJain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 01 to 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2000
Total Pages298
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy