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________________ પ૨૮ जैन श्वे. अन्न्स ३२८७. ४ शाकटायन व्याकरण पिछले समयमें जैनविद्वानों में बहुत प्रचलित रहा है और यही कारण है जो उसपर ७-८ वृत्तियाँ और टीकायें बन गई। हैं आपर्ट साहबके द्वारा प्रकाशित होनेके पहले भी वह दक्षिणके सभी जैनपुस्तकभण्डारे में प्राप्य था; परन्तु उस समय तक किसी भी जैन विद्वान् या टीकाकारने इस बातका दाबा न किया था कि यह वही व्याकरण है जिसका उल्लेख पाणिनि ने किया है । यदि ये प्राचीन शाकटायन होते तो अवश्य ही इस बातका उल्लेख मिलता । यह दाबा जैनांका नहीं किन्तु आपर्ट साहबका है और इसमें इसके सिवाय और कोई महत्त्व नहीं है कि यह एक 'गौर काय' महाशय का किया हुआ है। ५ एकीभाव स्तोत्रके कर्ता कविश्रेष्ठ वादिराजमूरिका बनाया हुआ एक पार्श्वनाथ नामका काव्य है । यह विक्रम संवत् १०८३ का बना हुआ है । उसकी उत्थानिकामें एक श्लोक है: कुतस्त्या तस्य सा शक्तिः पाल्यकीर्तेमहौजसः। श्रीपदश्रवणं यस्य शादिकान्कुरुते जनान् ॥ अर्थात् , उस महातेजस्वी पाल्यकीर्तिकी शक्तिका क्या वर्णन किया जाय कि जिसके श्रीपद के सुनते ही लोक शाद्विक या व्याकरणज्ञ हो जाते हैं। . इससे मालूम होता है कि पाल्यकीर्ति कोई बड़े भारी वैयाकरण थे। अब. शाकटायनप्रक्रियाके मंगलाचरणको और देखिएः 'मुनीन्द्रमभिवन्द्याहं पाल्यकीर्ति जिनेश्वरम् । मन्दबुद्ध्यनुरोधेन प्रक्रियासंग्रहं ब्रुवे ॥ इसमें जो ‘पाल्यकीर्ति' शद्ध आया है वह जिनेश्वर का विशेषण भी है और एक आचार्यका नाम भी है। एक अर्थसे इसके द्वारा जिनेन्द्रदेवको और दूसरे अर्थसे प्रसिद्ध वैयाकरण पाप्यकीर्तिको नमस्कार होता है। दूसरे अर्थमें मुनीन्द्र और जिनेश्वर (जिनदेव जिसका ईश्वर है ) ये दो सुघटित विशेषण पाल्यकीर्तिके बन जाते हैं। प्रक्रियासंग्रहके कर्त्ताने जिन पाल्यकीर्तिको नमस्कार किया है, इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि वे वादिराजके उल्लेख किये हुए पाल्यकीर्ति वैयाकरण ही हैं और जब यह निश्चय हो गया तब यह अनुमान करना बहुत संगत होगा कि
SR No.536627
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1915 07 08 09 Pustak 11 Ank 07 08 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1915
Total Pages394
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size11 MB
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