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श्रीन श्वे. 1. उ२८३. खूब ! यह भी कुछ युक्ति है ? जैनागम, वेद, वेदान्त, पुराणादि सैकड़ों ग्रन्थों में साल ( रचना काल ) नही पाई जाती इससे क्या डा. साहब उन सब ग्रन्थों को अर्वाचीन मानेंगे ? नहीं नहीं ऐसा कभी नही हो सकता । इससे तो यह सिद्ध होता है कि जेकोबी साहब का यह लिखना विना शोध का और उतावल का है।
उक्त प्रस्तावना में और भी अनेक अशुद्धियां है पर उनका उलेख यहां पर अप्रासंगिक होने से नहीं किया जाता।
. मुझे आशा है इन साधक बाधक प्रमाणों से आप को मानना उचित होगा कि हरिभद्रसूरि का स्वर्गवास ठीक ५८५ में ही हुआ है, तथापि यदि किसी भी महाशय के पास इस विषय के साधक बाधक और भी प्रमाण होवें
और अगर वे प्रकाशित करें तो जरूर ही इस गूढ विषय में भी अच्छा प्रकाश पड़ेगा।
प्रियपाठकटंद ! इस विषय में मुझे जो कुछ मालूम था उस का सार आपको अर्पण कर चुका हूं। मैं जानता हूं कि इस जटिल विषय में जरूर ही मै स्खलित हुआ होऊंगा इस लिये आप को लाजिम है कि अगर इस लेख में किसी जगह स्खलना मालूम हो तो मुझको सूचना देने की तकलीफ उढावें, मैं उपकार के साथ उसका स्वीकार करूंगा।
प्रार्थी
गुरुवार ता. ५.-८-१९१५ जालोर ( मारवाड़)
. कल्याणविजय